SKULL TOWER (KULAH-MINAR)

History of Skull Tower
नरमुंड स्तम्भ (नरमुंडों की मीनार) का इतिहास
 
 
नरमुंडो की मीनार, आगरा, 1628, पीटर मुंडी की पुस्तक से उद्घृत
 
नरमुंडो की मीनार, यह वाक्य सुनकर हमारे मस्तिष्क में अनायास विदेशी बर्बर आक्रांताओ की छवि घूम जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में नरमुंडों की मीनार एक बहुचर्चित शब्द है, और इतिहास में इसे हमेशा मध्यकालीन बर्बर जातियों से जोड़ा गया है। हालाँकि, इसका समानार्थक संस्कृत शब्द “कपाल स्तम्भ” भारतीय संस्कृति में चर्चित नहीं है, क्योंकि नरमुंडो की मीनार भारतीय हिन्दू संस्कृति का हिस्सा कभी भी नहीं रही है। लेकिन मध्ययुग के बर्बर वृतांत जो भारत के हर एक व्यक्ति ने कभी न कभी अवश्य सुने होंगे, भारत में बाहर से आने वाली बर्बर जातियों द्वारा यहाँ के निवासियों पर ढहायी जाने वाली क्रूरता का पर्याय रहे है। यद्यपि यह एक ऐसा विषय है जिस पर भारत जैसे सभ्य देशो में चर्चा करना भी वर्जित है, अधिकांश लोग इस विषय पर लिखना तो दूर, बात करने से भी कतराते है, लेकिन हम अपनी रिपोर्ट में इसके उद्भव और अलग-अलग समय और क्षेत्रो में हुई ऐतिहासिक घटनाओ पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।
अधिकतर लोग नरमुंडों की मीनारों का सम्बन्ध इस्लामिक आक्रांताओ से जोड़ते है, यह सम्बन्ध पूर्ण रूप से सत्य नहीं है। ऐतिहासिक दस्तावेज़ो एवं कथाओं के आधार पर देखा जाए तो इस्लामिक शासको ने पराजित राज्य के निवासियों का बड़े पैमाने पर नरसंहार कर उनके कपाल से मीनार बनवाने की परंपरा भले ही खुले दिल से अपना ली हो, लेकिन यह नरमुंडों वाली संस्कृति मूलत: अरब की देन नहीं है।
अरबियो के सत्ता में आने से बहुत पूर्व से ही नरमुंडों की मीनार, मेसोपोटामिया के कांस्ययुगीन राज्यों और यूरेशिया की विभिन्न जातियों के मध्य, शत्रुओं के हृदय में भय बैठाने का और युद्ध में प्राप्त जीत का जश्न मनाने का एक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय तरीका था।
मेसोपोटामिया के इतिहास में असीरिया, बेबीलोनिया जैसे राज्य हुये है, जिनके उदाहरणों में शत्रु सेनाओ और युद्धबंदियों को वीभत्स यातनाए और मृत्युदण्ड देने के तरीके प्रस्तरों, ताम्रपत्रो या भित्तिचित्रों में दर्शाये गए है। अत: नरमुंडों को बुर्ज पर टाँगने, या भालो की नोक से लटकाने का प्रचलन काफी पुराना है। ठीक इसी तरह के उदाहरण हमे मिस्त्र और हिटाइट संस्कृतियों में भी मिलते है । परंतु आश्चर्य की बात है कि प्राचीन भारत में इस तरह के उदाहरण बहुत ही कम देखने को मिलते है। अब यदि समकालीन ग्रीक, रोमन या चीन जैसे सभ्य देशो का इतिहास देखा जाये तो इनमे भी नरमुंडों के पिरामिड या नेजों(भालों) में नरमुंड लगाने का रिवाज काफी पुराना है।
 
इतिहास के पितामह, हेरोडोटस (5वी सदी ईसापूर्व) अपने वृतांत में यूरेशिया के घास के मैदानों (स्टेपीज़) में रहने वाली सीथियन (शक) जाति की चर्चा करते हुये कहते है, “ये लोग इतने खूँखार और बर्बर होते है कि अपनी जीत का जश्न शत्रु के कपाल में सुरा को पीकर करते है”।
स्वयं हेरोडोटस के शब्दों में,
“उन शत्रुओं, जिनसे वे (सिथियन) सबसे अधिक घृणा करते है उन लोगों की खोपड़ी के साथ वे निम्न प्रकार बर्ताव करते है।
भौंहों से नीचे के हिस्से को काट कर हटा देते है और अंदर का हिस्सा अच्छे से साफ करके, वे बाहरी भाग चमड़े से ढँक देते है। यदि कोई व्यक्ति गरीब होता है, तो वह इसे ऐसा ही रखता है; लेकिन यदि वह धनी है, तो वह कपाल के अन्दर सोने की पट्टी भी लगाता है; दोनों ही मामलों में कपाल को शराब पीने के कप के रूप में उपयोग किया जाता है। यदि उनकी अपने ही परिजनों और मित्रों के साथ शत्रुता हो जाए तो अपने राजा की उपस्थिति में उन्हे पराजित करने के पश्चात उनकी खोपड़ी के साथ भी ऐसा ही किया जाता है । जब कोई बाहरी व्यक्ति किसी काम से उनसे मिलने घर आता है तो शराब इन्ही गोल कपाल में परोसी जाती है, और मेज़बान बताता है कि कैसे यह खोपड़ी उनके रिश्तेदार थे, जिन्होंने किसी कारण से उस पर हमला किया, और कैसे मेज़बान ने उन्हे हराया, यह सब वह अपनी बहादुरी के सबूत के रूप में दिखाता है।“
 
“The skulls of their enemies, not indeed of all, but of those whom they most detest, they treat as follows. Having sawn off the portion below the eyebrows and cleaned out the inside, they cover the outside with leather. When a man is poor, this is all he does; but if he is rich, he also lines the inside with gold; in either case the skull is used as a drinking cup. They do the same with the skulls of their own kith and kin if they have been at feud with them, and have vanquished them in the presence of the king. When strangers whom they deem of any account come to visit them, these skulls are handed round, and the host tells how that these were his relations who made war upon him, and how that he got the better of them, all this being looked upon as proof of bravery“ 
 

ठीक इसी प्रकार, प्राचीन समय में सिमेरियन, कुषाण(हु ची), हूण, सारमेशियन, हेप्थल और मध्ययुग के दौरान तातर, मंगोल, तुर्कोमन, तुर्क, खज़ार इत्यादि बर्बर जातियाँ रही है, जिन्होने अपने हिंसक, जंगली और असभ्य तरीको से लोगो को यातना देने कि परिपाटी जारी रखी।
आमतौर से अमू दरिया नदी( ग्रीक–ओक्सुस, अरबी-जयहून) एवं स्यर दरिया नदी( ग्रीक-जेक्सार्टिस, अरबी-सेयहून) के बीच का भाग, अल्ताई पर्वत की घाटी और तिएन शान के बीच, तथा तीसरा तकलामकान रेगिस्तान और पामीर के बीच का हिस्सा बर्बर जातियों का मुख्य निवास स्थान माने जाते है, लेकिन ये जातियाँ कभी एक जगह स्थिर नहीं रहती थी बल्कि घुमंतू थी और अक्सर अन्य ताकतवर समूह द्वारा विस्थापित कर दी जाती थी, तब ये विस्थापित खूँखार और असभ्य लोग दक्षिण या पश्चिम के स्थाई सांस्कृतिक केन्द्रो जैसे ईरान, रोम और भारत जैसे देशो पर हमले करने लगते थे, इनके हमले एक रूप नहीं रहते थे, बल्कि टिड्डी दल कि भाँति होते रहते थे क्योंकि इनकी कोई केंद्रीय सत्ता न थी, बल्कि कबीले थे।
कालान्तर में इन्ही मुख्य समूहों के कई और उपसमूह बन गए और अनेक नये नामों से प्रचलित हो गए जैसे किरगीज, खितान, ऊईघर, कारखानिद, हूण, अवार, गोक्तुर्क, हेप्थल, करलुक इत्यादि।
इन सभी जनजातियों में दो बाते बहुत समान थी और वह यह कि ये सभी लोग घुमन्तु होते थे, मतलब इनका कोई एक घर नहीं था। ये लोग तंबुओ (युर्त-Yurt, गेर-Ger) में रहते थे और घोड़ों-ऊँटो पर सफर करते थे। लगभग प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना घोडा होता था। अन्य पालतू जानवर उनके जीवन का हिस्सा थे। यह लोग खेती बहुत कम ही करते थे और फलों माँस पर ज़्यादा निर्भर थे। घोड़े होने से ये जातियाँ लंबी दूरियाँ भी बहुत तेजी से पार कर लेती थी।
रोम पर भी उत्तर से विभिन्न बर्बर जातियां हमले करती रहती थी। जिनमे गाल, गाथ, विसिगाथ, ओस्ट्रोगाथ, हन्स इत्यादि थे। रोमन इतिहासकर डिओडोरस सिकुलस ने स्पष्ट तौर में अपनी पुस्तक में डेसियन जाति के बारे में लिखा है, 


नरमुंड पकड़े घुड़सवार, ईसा पूर्व 10-8वी सदी, सम-अल तुर्की, पेर्गामोन संग्रहालय, बर्लिन, जर्मनी

 “जब उनके शत्रु मर जाते है तो वो उनके सिर काट कर अपने घोड़ों की गर्दन से नीचे टांग देते है, हथियारो को अपने लोगो में बाँट देते है, फिर उस रक्तरंजित मस्तक को अपने साथ घर ले जाते है, इस जीत की खुशी में जुलूस निकाला जाता है और विजयी गीत गाये जाते है। फिर इन नरमुंडों को युद्ध में जीती गयी किसी ट्रॉफी की तरह घर में कील से टाँग दिया जाता है, जैसा की अक्सर लोग शिकार करने के बाद मारे गए जंगली जानवरो के सिरों के साथ करते है। अपने सबसे प्रसिद्ध शत्रु का नरमुंड काटने के बाद वे उसे देवदार के तेल से मल कर सुरक्षित करते है और फिर बड़ी सावधानी से एक बक्से में रख देते है। इसे वे बाहर से आने वाले अतिथियों को दिखाते है, और यह भी बताते है कि नरमुंड को लेने के लिए मृतक के सम्बन्धियो से आयी काफी धन की पेशकश को भी उसने या उसके पूर्वजो ने जिनके भी पास यह नरमुंड रहा है ने ठुकरा दिया।"

   “When their enemies fall they cut off their heads and fasten them about the necks of their horses; and turning over to their attendants the arms of their opponents, all covered with blood, they carry them off as booty, singing a paean over them and striking up a song of victory, and these first-fruits of battle they fasten by nails upon their houses, just as men do, in certain kinds of hunting, with the heads of wild beasts they have mastered. The heads of their most distinguished enemies they embalm in cedar-oil and carefully preserve in a chest, and these they exhibit to strangers, gravely maintaining that in exchange for this head some one of their ancestors, or their father, or the man himself, refused the offer of a great sum of money.”

 

जैसा कि पहले बताया जा चुका है, ऐसा नहीं है कि इस प्रकार के अमानवीय कृत्य केवल बर्बर घुमन्तु जातियो द्वारा ही किए जाते थे, असल में ऐसे कृत्य करना और फिर उनका दृश्यों या लेखो के माध्यम से गुणगान करना सभ्य समाजो का भी हिस्सा था, विशेषकर नरमुंडों का चित्रो के रूप में प्रदर्शन मिस्त्र के शासकों जैसे रा-मसेस द्वितीय, तृतीय, नवअसीरियन राज्य के अशुर नरसीपाल द्वितीय (8वी सदी ईसापूर्व), सिन-अहहे-एरीबा (सेन्नाक्रिब) (7वी सदी ईसा पूर्व) और अशुरबनिपाल (6वी सदी ईसा पूर्व) जैसे शासकों द्वारा महल की दीवारों पर बनवाए गए चित्रो में है, इनकी क्रूरता का जिक्र ओल्ड टेस्टामेंट में भी मिल जाता है। इसके अलावा ईरान के एकमेनिड (हखामनेशी) शासक दरियादुस (डेरियस) और कूरुष (साइरस) ने भी अपने 5वी सदी ईसा पूर्व के महलों की दीवारों (सूसा, पासरगदा, पर्सेपोलिस) को ऐसे चित्रो से सुशोभित किया था। इसमे से कुछ चित्र आज भी सुरक्षित है, जिनका वर्णन विभिन्न लिखित ऐतिहासिक वृतांत में भी मिल जाता है।

शत्रु का गला काटते हुये रोमन सैनिक, पहली सदी, ट्राजन स्तम्भ, रोम

उसके बाद ग्रीक, रोमन और सस्सानी साम्राज्य के दौरान भी यदाकदा नरमुंडों की दीवारों, पिरामिडों या मीनारों के संदर्भ मिल जाते है। भारत में भी बर्बर जातियों, जिन्हे हिन्दू धर्मग्रंथों में म्लेक्षों की संज्ञा दी गयी है ऐसे वीभत्स घटनाओ को दोहराती है, इनमे शक, कुषाण, पहलवी(पर्थियन), बहिलिका(बेक्ट्रीयन) और हूण(हेप्थल) प्रमुख रही है।

हूणों के बाद दक्षिण एशिया, दक्षिण पश्चिम एशिया, और पश्चिम की तरफ तुर्को, मंगोलों और उज़्बेकों का प्रसार होता है और ये अपने साथ शत्रुओं को भयभीत करने के लिए यूरेशिया के कुख्यात, वीभत्स तरीके लेकर आते है। इसमे भारत आने वाली तुर्की शाखा, और ईरान जाने वाले सेल्जुक तुर्क एवं मध्य पूर्व के आटोमन तुर्क शामिल है।

इन युद्धों में जब कोई तुर्की या मंगोल सेना विजयी होती थी तो युद्ध बंदियो या युद्ध में मारे गए शत्रुओं के शरीर के हिस्से छिन्न-भिन्न करना, मस्तक काट कर नेजे( बल्लम या सांग) या द्वार-किले के बुर्ज पर टाँगना, नरमुंडों का पिरामिड या मीनार बनाया जाना प्रसिद्ध था। मध्ययुग के दस्तावेज़ो में ऐसे किस्सो की भरमार है।

इन नरमुंडों की मीनारों का विभिन्न भाषाओ में अलग-अलग नाम था, जैसे कि

1. फ़ारसी भाषा में इसे कोलेमीनार, कुलामीनार यह कल्लेमीनार के नाम से जाना जाता था।

2. अरबी भाषा में इसे बुर्ज़ अल-रूस अथवा बुर्ज़ अल-जमजमा कहते थे।

3. तुर्की भाषा में इसे कुरु कफ़ा कुलेसी अथवा कल्लेकुलेसी कहा जाता था।

4. फ्रेंच भाषा में इसे टूर डी क्रेन कहते थे।

5. ग्रीक भाषा में प्यरगोस क्रनिओ, क्रनिओ ट्रोपिओन या नेक्रोंखेफाली ट्रोपिओन कहते थे।

6. रोमन भाषा में इसे कल्वेरियम तुर्रिम या ट्रोपियम ट्रेस्चिओ कहा जाता था।

7. अँग्रेजी भाषा में इसे स्कल टावर कहते थे।

 

बगदाद के मुख्य दरवाजे पर लटकता हुआ आईन मनी (Manichaeism) सम्प्रदाय के अनुचरों का कटा हुआ सिर, अल-बरुनी की (1015 ईसवी) पुस्तक से
 

मानवता का इतिहास ऐसे न जाने कितने अनगिनत उदाहरणों एवं विवरणों से भरा पड़ा है, जब विजेताओं ने अपने शत्रुओं की हत्या करके उनके शवो के सिर काट कर मीनारों में चुनवा दिया, अथवा बुर्जों या भालों/साँग की नोक पर टाँग दिया, यह सिलसिला पिछली सदी के आरम्भिक वर्षो तक चलता रहा है। प्रथम विश्व युद्ध के पहले तक जब तक की लोगों को प्रताड़ित करने के आधुनिक व्यापक एवं अनोखे तरीके ना आ गए तब तक युद्ध बंदियों के सिर काटने की परंपरा बहुत पसंदीदा कृत्य रहा है।

आइये अपने तथा बाहरी देशो के ऐसे संदर्भों पर एक-एक करके चर्चा करते है, इन संदर्भों को खोजने में काफी सतर्कता बरती गयी है लेकिन फिर भी संदर्भों के समय एवं स्थान में त्रुटि की संभावना हो सकती है। इसके अलावा काफ़ी ऐसे संदर्भ लोककथाओ या इतिहास की पुस्तकों में अभी भी दबे हुये है जिन्हे खोजा जाना बाकी है। यहाँ नोट करने की बात यह है कि यद्यपि इस तरह की सबसे ज्यादा घटनाए निर्विवाद रूप से बर्बर जातियों के द्वारा ही घटी होंगी, परंतु यदि इक्कादुक्का अपवादों को छोड़ दिया जाये, तो उनके द्वारा न कोई चित्र और न ही लिखित उदाहरण छोड़ा गया है, इसलिए ज़्यादातर उदाहरण हमे सभ्य समाजों से ही मिलते है।

विश्व मे कुलाह मीनार के सबसे पुराने कुछ उदाहरण, मेसोपोटामिया एवं मिस्त्र की प्राचीन सभ्यताओ में मिलते है। इनमे सबसे पहला उदाहरण प्राचीन मेसोपोटामियाई राज्य अक्कद का है।
 
राजा नरम सिन का प्रस्तर खम्भ
Courtesy : Musée du Louvre, Paris (https://www.louvre.fr/en/)
 

यह प्रस्तर खण्ड लगभग 2400 ईसा पूर्व के मेसोपोटामिया स्थित अक्कद राज्य का है। अक्कदियन सेना राजा नरम-सिन के नेतृत्व में लुल्लुबी राज्य पर हमला करती है। लुल्लुबी लोग, उत्तरी ईरान में स्थित जरगोस पर्वत के निवासी थे। यहाँ अक्कादियन राजा नरम-सिन को लुल्लुबियों के शवों से बने पिरामिड पर खड़ा दर्शाया गया है और बाई तरफ सेना उसका अनुसरण करती हुयी, पीछे-पीछे आ रही है। दाई तरफ भयभीत लुल्लुबी लोग उससे अपने जीवन की प्रार्थना कर रहे है। नरम-सिन ने देवताओ वाला शिरस्त्राण पहना हुआ है, यह दर्शाता है कि नरम-सिन अपने आपको देवतातुल्य समझता था। 


अक्कदियन राजा रिमूश (2270 ईसा पूर्व) का लगाश राज्य पर हमला

Courtesy : Musée du Louvre, Paris (https://www.louvre.fr/en/)

यह प्रस्तर खंड अक्कद की प्राचीन राजधानी गिरशु से प्राप्त हुआ है और अक्कद राज्य की लगाश (वर्तमान अल-हिबा, इराक़) पर विजय को दर्शाता है, चित्र में अक्कद के सैनिक द्वारा लगाश के निवासियों को नग्न करके और फिर दाढ़ी पकड़ कर गला काटते हुये दर्शाया गया है।  

 

 

 रा-मसे-स द्वितीय (12वी सदी ईसा पूर्व) की कादेश विजय

 फराओ को युद्धबंदी अपने हाथ काट कर अर्पण करते हुये (रॉ-मसेस II का मकबरा)

यह दृश्य प्राचीन मिस्त्र के शासक रा-मसे-स द्वितीय (12वी सदी ईसा पूर्व) के मकबरे का है और अभी तक ज्ञात युद्धो में सबसे प्राचीन रिकॉर्ड है। इस दृश्य में रा-मसे-स द्वितीय के नेतृत्व में मिस्त्री सेना द्वारा हत्ती(हिट्टी) शासक मुवत्तली-II की सेना से युद्ध जीतने के पश्चात, युद्ध बंदियों को राजा के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। यह युद्ध आज के लेबनान-सीरिया की सीमा पर ओरन्तोस नदी के किनारे प्राचीन नगर कादेश में 1274 ईसा पूर्व में लड़ा गया था। प्राचीन इतिहास के इस युद्ध के बारे में हमारे पास सबसे अच्छी तरह से जानकारी मौजूद है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि यह युद्ध लोहे के शास्त्रों ने नहीं लड़ा गया था अपितु यहाँ कांसे के बने हुये हथियार प्रयोग किए गए थे। मिस्त्री सैनिकों द्वारा युद्ध के पश्चात युद्धबंदियों के हाथ या जननांग काट कर फराओ के सामने प्रस्तुत करने पर पुरुस्कृत किया जाता था। 

मनुष्य के जननांगों का पिरामिड, आश्चर्यचकित परंतु सत्य
 

 

रा-मसे-स तृतीय एवं लीबिया के युद्धबंदी

यह दृश्य प्राचीन मिस्त्र के मेदिनत हाबू में स्थित रा-मसे-स तृतीय के मंदिर (1170 ईसा पूर्व) का है। दृश्य में लीबिया के युद्धबंदी, फराओ को अपने कटे हाथ अर्पण कर रहे है और पीछे रिकॉर्ड करने वाला हिसाब लिख रहा है।

 

  सेती प्रथम का मक़बरा

यह दृश्य मिस्त्र स्थित राजाओ की घाटी में फ़राओ सेती प्रथम के मक़बरे का है जिसमे प्राचीन मिस्त्र के एक धार्मिक अनुष्ठान को दर्शाया गया है। गुप्त दरवाजे की पुस्तक (book of secret chamber) के तहत मंदिर के महंत बंदियों के सिर कलम करके देवताओ को अर्पण कर रहे है।

 

 रा-मसे-स पंचम का मंदिर

रा-मसे-स पंचम के मंदिर में मिले एक और दृश्य में दीवार पर पृथ्वी की पुस्तक उत्कीर्ण है इस धार्मिक अनुष्ठान के अनुसार मंदिर की पुजारिने नूबिया के युद्ध बंदियो की बलि देवताओ को समर्पित कर रही है। यह दृश्य बहुत वीभत्स है।

 

रा-मसे-स पंचम के मंदिर में मिले एक और भित्तिचित्र में पृथ्वी के जन्म पर आधारित पुस्तक से सूर्य के जन्म से जुड़े एक जटिल अनुष्ठान को दर्शाया गया है, यहाँ बंदियो को एक-एक करके बलि के लिए बैठाया जाता है तथा अगले दृश्य में पुजारियों के दण्ड की नोक पर उन्ही बंदियो के नरमुंड लगे है। नीचे की तरफ दृश्य में उन्ही बंदियो के बिना सिर के धड़ दिखाये गए है। यह दृश्य बहुत भयावह है । 


 नव असीरियन राज्य

असीरियन शासक सारगोन द्वितीय (शार्रुक), सारगोन का महल, खोरसाबाद, इराक (सौजन्य: मोसुल संग्रहालय)

19वी सदी में प्राचीन असीरिया की खोज के बाद बहुत विस्मयकारी तथ्य निकलकर सामने आए है जिनमे उनकी प्राचीन राजधानी अस्सुर, निनेवेह, निमरूद और खुरसाबाद इत्यादि में मिले पुरातत्व अवशेषो, अभिलेखो और मृदु टेबलेट्स के आधार पर प्राप्त सूचनाए है। नव असीरिया (9वी से 6वी शताब्दी ईसा पूर्व) एक बहुत शक्तिशाली राज्य था और यहाँ के महान शासकों ने अपने आस-पास के देशो पर बहुत जबर्दस्त हमले किए और इन हमलो से मिलने वाली लूट की सामग्री से इन्होने अपनी राजधानियों में बड़े बेहतरीन और विशाल निर्माण करवाए। अधिकतर अस्सीरियन शासक बेहद कठोर और निर्दयी हुआ करते थे और अपने महलो की दीवारों और दरवाजों पर अपनी क्रूर विजयों के भित्तिचित्र अंकित किए है जो इनकी निर्दयता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

यह दृश्य असीरिया के शासक तिग्लाथ पिलेसर (तुकूल्ती-एस्सार्रा) तृतीय (745-727 ईसा पूर्व) के महल कल्हू (निमरुद) से है। इस दृश्य में असीरियन सेना को उपा (तुर्की में स्थित) नामक दुर्ग पर हमला करते हुये दर्शाया गया है। किले के बाहर बुर्ज पर उन्होने तीन स्थानीय निवासियों के शव खम्भे की नोक पर लटकाए हुये है।

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

यह दृश्य असीरियन शासक शालमनेसर (सुलेमानु-असुरेदू) तृतीय के महल के समीप स्थित बालावत (इमगुर-एन्लिल) मंदिर में देवदार के दरवाजे में लगी काँसे की पट्टी पर उत्कीर्ण है। इसका निर्माण लगभग 840 ईसा पूर्व में हुआ था। दृश्य में असीरियन सेना द्वारा 856 ईसा पूर्व में उरार्तु (अरारात) नगर के दुर्ग को ध्वस्त करना दिखाया है। दृश्य से साफ है कि असीरियन सेना ने वहाँ के निवासियों के नरमुंड किले की दीवारों और बुर्ज पर टाँग दिये और लोगो को सलाखों के बल पर लटकाया है। यातना देने का यह बड़ा ही अमानवीय तरीका है जिसमे मनुष्य के मलद्वार (गुदा) से लंबी सलाख घुसायी जाती है जो मुख के रास्ते बाहर निकलती है व्यक्ति इस पर जिंदा ही लटका दिया जाता है। सलाखे गर्म होती है जिसकी वजह से इस दौरान होने वाले घाव का रक्त भी सूख जाता है और व्यक्ति की मौत रक्तस्त्राव से नहीं होती ह। आमतौर पर मनुष्य ऐसी अवस्था में करीब 36 घंटे तक जीवित रहता है और धीरे-धीरे तड़प कर मरता है।

 

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

यह दृश्य भी असीरियन शासक शालमनेसर-III (सुलेमानु-असुरेदू) के महल के समीप स्थित बालावत (इमगुर-एन्लिल) मंदिर में देवदार के दरवाजे में लगी काँसे की पट्टी पर उत्कीर्ण है, यहाँ शालमनेसेर-III की असीरियन सेना द्वारा हिट्टिओ के नगर तिल-बरसीप (तेल-अहमेर, सीरिया) पर 856 ईसा पूर्व मे हमला करते हुये दिखाया गया है। पराजित करने के बाद असीरियन सेना ने वहाँ के निवासियों को नगर की ऊँची पहाड़ी पर खम्भों से बेध कर लटका दिया ।

 

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

यह दृश्य बाइबिल के प्रसिद्द असीरियन राजा सेन्नाक्रिब (सिन्हे-अरीबा) के निनेवेह स्थित महल का है जिसमे 701 ईसा पूर्व में असीरिया द्वारा यहूदी देश जूडिया के एक नगर लकीश पर हमले को दर्शाया गया है। इस युद्ध का विस्तृत वर्णन बाइबिल में भी मिलता है। इस बारे में काफी कुछ स्वयं सेन्नाक्रिब के प्रिज्म और सिलिन्डर सील उत्कीर्णों में भी लिखा है। युद्ध में असीरिया की विजय होती है और असीरियन सेना वहाँ के निवासियों को तरह-तरह की यातनाए देती है। दृश्य में असीरियन सैनिक लकीश निवासियों को सूली की नोक से बेध कर लटका रहे है। 

 

लकीश पर हमले का प्रस्तर चित्र, (सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन)

 

यहूदी राजा हेजेकियाह के जेरूसलेम नगर पर असीरियन घेराव 
लॉर्ड बायरन की कविता "सेन्नाक्रिब की तबाही"
The Destruction of Sennacherib By Lord Byron (George Gordon)
 

 

The Assyrian came down like the wolf on the fold, And his cohorts were gleaming in purple and gold; 
असीरियनों ने ऐसे हमला किया जैसे भेड़ों के झुंड पर भेड़िया टूट पड़ते है, उनके घुड़सवार बैंगनी और सोने रंग के कवच में दमक रहे थे।
 
 And the sheen of their spears was like stars on the sea, When the blue wave rolls nightly, on deep Galilee. 
उनके भालों की चमक ऐसे थी मानो जैसे रात्री में गहरे गैलीली समुद्र पर नीली लहरे चल रही हो और उस पर टिमटिमाते सितारो का प्रतिबिम्ब बन रहा हो।
 
    Like the leaves of the forest, when Summer is green, That host with their banners at sunset were seen. 
ग्रीष्म ऋतु में किसी घने जंगल के पत्तों की भांति असीरियन सेना, सूर्यास्त के समय अपनी पताकाये फहराती है।
 
Like the leaves of the forest when Autumn hath blown, That host on the morrow lay withered and strown.
और अगली ही सुबह वे किसी पतझड़ के जंगल की भाँति, सुखी घास और मुरझाए हुये पत्तों की तरह छितर जाते है। 
 
 For the Angel of Death spread his wings on the blast, And breathed in the face of the foe as he passed; 
क्यूंकी मृत्युदूत (यमदूत) ने अपने पंख पसारे और सोते हुये शत्रुओं के ऊपर गुजरते हुये उनकी साँस खीच ली 
 
And the eyes of the sleepers waxed deadly and chill, And their hearts but once heaved, and for ever grew still! 
और देखते ही देखते सोते हुये असीरियन सैनिको की आंखे जड़वत एवं ठंडी पड़ गयी, उनके हृदय एक अंतिम बार धड़के और फिर हमेशा के लिए शान्त हो गये  
 
And there lay the steed with his nostril all wide, But through it there rolled not the breath of his pride; 
धरती पर पड़े हुये घोड़े के नथुने फैले तो थे, लेकिन इनमे कोई गौरवमयी श्वास नहीं थी 
 
And the foam of his gasping lay white on the turf, And cold as the spray of the rock-beating surf. 
और चट्टानों से टकराते समुद्र के ठंडे झाग की भाँति मृतप्राय: अश्व के मुख से निकले फ़ेन ने भूमि को श्वेत कर दिया था,
 
And there lay the rider distorted and pale, With the dew on his brow, and the rust on his mail 
समीप ही अश्वारोही भी पड़ा था, शरीर संकुचित और पीला था, रात की ओस चेहरे पर अभी भी लगी थी और कवच पर जंग लगना आरंभ हो चुका था।
 
And the tents were all silent, the banners alone, The lances unlifted, the trumpet unblown.
शिविरों में कोई आवाज़ नहीं थी, झंडो को पकड़ने वाला, भालों को उठाने वाला कोई नही था, ना ही कोई तुरही को बजाने वाला था । 

And the widows of Ashur are loud in their wail, And the idols are broke in the temple of Baal;
असीरिया में, असुर सैनिकों की विधवाये ऊँची आवाज़ में विलाप कर रही थी, बाल (बेल-इ-लाह, असुर देवता) के मंदिर की मूर्तिया टूट रही थी।
 
And the might of the Gentile, unsmote by the sword, Hath melted like snow in the glance of the Lord!
और देखते ही देखते शक्तिशाली असुरों की अजेय सेना, ईश्वर (जेहोवाह) की एक दृष्टि से पिघलते हुये बर्फ की भाँति समाप्त हो गयी।

  


(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

यह दृश्य असीरियन शासक शालमनेसर-III (सुलेमानु-असुरेदू) के समय में बालावत (इमगुर-एन्लिल) नामक स्थान पर देवदार के दरवाजे में लगी काँसे की पट्टी पर उत्कीर्ण है। इसमे असीरियन सेना का टिगरिस (दजलाह) नदी के उदगम पर स्थित एक नगर कुलिसी (वर्तमान आर्मेनिया) पर हमला दर्शाया गया है, उत्कीर्ण के अनुसार यह हमला 853 ईसा पूर्व में हुआ था। पहले दृश्य में एक असीरियन सैनिक कुलिसी के निवासी को नग्न करते हुये दिखाया गया है, दूसरे दृश्य में असीरियन सैनिक  निवासी के हाथ एवं पैर काट देता है तथा अंतिम दृश्य में उस व्यक्ति को बल्लम की नोक से बेध कर नगर के किले के समीप लटका दिया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस तरह के कारनामे असीरियन सेना के लिए बड़ी आम बात थी।   

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

कुलिसी नगर के दुर्ग को जीतने के पश्चात असीरियन सेना किले में आग लगा देती है एवं किले की दीवार एवं बुर्ज को वही के निवासियों के नरमुंडो से सजा दिया जाता है। ज़रा विचार करके देखे, उस समय यह बड़ा ही वीभत्स दृश्य रहा होगा।

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

इस दृश्य में प्रसिद्द असीरियन राजा सेन्नाक्रिब (सिन्हे-अरीबा) द्वारा दक्षिण मेसोपोटामिया में स्थित काइल्डिया (काल्दु) लोगो पर हमले को दर्शाया गया है, यह सेन्नाक्रिब के निनेवेह महल (701 ईसा पूर्व) में स्थित था, जिसे अब ब्रिटिश म्यूजियम स्थानान्तरित कर दिया गया है। दृश्य में सैनिक काइल्डिया के निवासियों के कटे सिर लाकर असीरियन अधिकारियों को गिनती करवा रहे है, नीचे नरमुंडों के ढेर को देखिये, नरमुंडों के पिरामिड ऐसे ही बनते होंगे।


(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)
नरमुंडों के पिरामिड का नज़दीक से चित्र

  


(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

यह एक और असीरियन दृश्य अशुरबनिपाल के महल का है जिसमे टिल-टुबा का युद्ध दिखाया गया है। टिल टुबा का युद्ध असीरियन सेना और विद्रोही एलाम (दक्षिणी ईरान) के बीच हुआ था, इस युद्ध में विद्रोही राजा ते-उम्मान और उसके पुत्र की बड़ी बेदर्दी से सिर काट कर हत्या कर दी गयी थी। दृश्य में असीरियन सैनिक एलाम के लोगो के सिर कलम कर, उच्च अधिकारियों को दिखाने के लिए एक जगह लाकर एकत्रित कर रहे है ।

 

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

अगला दृश्य शालमनेसर तृतीय के कांस्य पत्र से लिया गया है जिसमे लगभग 850 ईसा पूर्व में असीरियन, शुबरी लोगो के निवास स्थल उबुरी (वर्तमान आर्मेनिया) पर हमला करके उनके नगर को बुरी तरह से ध्वस्त कर देते है। दृश्य में असीरियन धनुर्धारी शुबरीयन निवासियों के नरमुंडों को एक के ऊपर एक लगाकर अपनी धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे है। आज के समय के हिसाब से यह एक बहुत बर्बर तरीका था।

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

अभ्यास करने का यह तरीका तो शायद आपने सोचा भी न होगा

  


शालमनेसर का एक शिलालेख कुछ इस तरह है

बेबीलोन के विरुद्ध अभियान : 850 ईसा पूर्व (राजा का नौवा वर्ष)

बेल-बुनाइया के वर्ष में निसानु माह के 20वे दिन, मैं अपने दूसरे अभियान पर निनेवेह से निकला।
मार्ग में मैंने बड़ी और छोटी ज़ाप नदी पार की, और लहिरु नगर आ पहुंचा। मैंने इसे कब्जा लिया और बर्बाद कर दिया, इसके लोगो को मार दिया और धन संपदा लूट ली। लहिरु छोडने के बाद, मैं गन्नानेत पहुँचा। (यहाँ का शासक) मर्दुक-बेल-उसाते, लसुबी पर्वतों की तरफ अरमान नगर के किले में ऐसे छिप गया, जैसे कोई लोमड़ी किसी छोटे से बिल में घुस जाती है। मैंने गन्नानेत को कब्जा लिया, इसके निवासियों की हत्या कर दी और पूरा नगर लूट लिया। उसके बाद मैं उसका पीछा करता हुआ पर्वतों पर चढ़ गया, और अरमान में उसको घेर लिया। मैंने नगर को कब्जा लिया और नष्ट कर दिया, इसके निवासियों का वध कर दिया और पूरा माल लूट लिया। मैंने मर्दुक-बेल-उसाते को तलवार से काट डाला, उसका एक भी अनुचर मुझसे बच नहीं सका।
 
Campaign against Babylonia: 850 BC Year 9
On a second campaign, in the year named after Bêl-bunâia, on the 20th of Nisanu I left Nineveh, crossed the Great and Little Zap Rivers, and came to the city of Lahiru. I stormed and captured it, killed its people, and carried off its spoil. Leaving Lahiru I approached Gannanate. Marduk-bêl-usate got away, like a fox, through a hole in the wall, and headed toward the Iasubi mountains, He made the city of Arman into his fortress there. I captured Gannanate, killed its inhabitants, and carried away its spoil. Then I climbed the mountain in pursuit of him, trapping him in Arman. I stormed and captured that city, slew its inhabitants, and carried off its spoil. I cut down Marduk-bêl-usate with the sword, and not one of his camp-followers who were with him escaped.

 

 

यह प्रस्तर खण्ड इराक के मोसुल जिले के समीप खोरसाबाद में स्थित सर्गोन द्वितीय (शार्रुक) के महल दुर-शार्रुकीन से मिला है। इस दृश्य में प्रसिद्ध बाइबिल की घटना को दोहराया गया है । दृश्य में असीरियन शासक ने तीन इसराएली राजाओ को जंजीर द्वारा उनके ओंठ में फँसे काँसे के छल्ले से पकड़ा है और उनमे से एक युद्धबंदी की आँख अपने भाले से फोड़ रहा है। एक हारे हुये शासक का इससे ज्यादा अपमान कोई सोच नहीं सकता।

बाईबिल में असीरिया सेना के द्वारा काँसे की छल्लों के कुछ उल्लेख इस प्रकार है

ईश्वर ने असीरियन राजा के सेनापतियों को उनके विरुद्ध भेजा, उन्होने मनासेह को छल्ले द्वारा पकड़ा और काँसे की जंजीर से जकड़ कर बेबीलोन ले गए।
"The Lord brought the commanders of the army of the king of assyria against them, and they captured Manasseh with hooks, bound him with bronze chains to Babylon." - 2 chronicles 33.11

 

लेकिन कल्दियों की सेना ने जूड़ाह के राजा जेडेकियाह का पीछा किया, और जेरिकों (येरिकों) के मैदान में उसे पकड़ लिया। जूड़ाह के राजा की पूरी सेना उससे बिछड़ गयी। वे उसे बंदी बनाकर रिबलाह में बेबीलोन के शासक के सामने ले गए, जहां उसे सजा सुनाई गयी। जेडेकियाह के पुत्रो को उसकी आँख के सामने वध कर दिया गया इसके बाद उसकी आंखे निकाल दी गयी और काँसे की जंजीरों से बांध कर बेबीलोन ले जाया गया।

"But the army of the Chaldeans pursued the king of Judah, and they overtook him in the plains of Jericho. All his army was scattered from him. So they took the king and brought him up to the king of Babylon at Riblah, and they pronounced judgment on him. Then they killed the sons of Zedekiah before his eyes, put out the eyes of Zedekiah, bound him with bronze fetters, and took him to Babylon."  - 2 Kings 25:5-7

 

इस कारण कि तू मेरे विरुद्ध लोगों का क्रोध भड़काता है और तेरे उपद्रव की बाते मेरे कानो तक पड़ी है, इसलिए मैं तेरी नाक में अपनी नकेल डालकर और तेरे ओंठ से अपना लगाम लगाकर, जिस मार्ग से तू आया है, उसी से तुझे लौटा दूँगा 

" Because thy rage against me and thy tumult is come up into mine ears, therefore I will put my hook in thy nose, and my bridle in thy lips, and I will turn thee back by the way by which thou camest." - 2 Kings 19:28; Isaiah 37:29

 

(सौजन्य : ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, https://www.britishmuseum.org/)

मेसोपोटामिया से प्राप्त इस काँसे की मूर्ति में एक योद्धा अपनी तलवार से स्वयं का गला काट रहा है। हमारे विचार से यह होमर द्वार रचित इलियड का महान यूनानी योद्धा अजाक्स है, जिसने आत्महत्या कर ली थी।

 

 

 रोमन निरूपण

ट्राजन स्तम्भ को रोम की सीनेट ने रोम के महान शासक ट्राजन की याद में बनवाया था। इसका निर्माण कार्य 113 ईस्वी में पूरा हुआ। इस स्तम्भ की दीवारों पर ट्राजन की डेसीया पर विजय का वृतांत अंकित किया गया है । ट्राजन स्तम्भ के इस दृश्य में डेसीयन लोगो के नरमुंड सांग की नोक पर टंगे है। इन्हे रोमन सेना ने डेसिया के निवासियों को भयाक्रान्त करने के लिए लगाया है।

 

ट्राजन स्तम्भ के इस दृश्य में रोमन सैनिक एक डेसीयन का नरमुंड अपने मुह में दबाकर युद्ध कर रहा है, युद्ध के मैदान में शत्रुओं का मनोबल गिराने का यह अच्छा तरीका है, मध्ययुगीन इस्लामिक सेनाएं भी ऐसे ही तरीके आजमाती थी।

 

इस दृश्य में रोमन सैनिक, ट्राजन को डेसिया के निवासियों के कटे हुये सिर दिखा रहे है।

 

यह दृश्य रोमन शासक मार्कस औरेलियस (दूसरी शताब्दी) के स्तम्भ का है। मार्कस औरेलियस ने गॉल, जर्मेनिया और सारमेशिया में बड़े सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया था। दृश्य में रोमन सेना ने जर्मनिक लोगो को बंदी बनाया है। नोट करने की बात यह है कि यहाँ रोमन सिपाही दृश्य के पीछे दिख रहे है और सामने की तरफ दो डेसीयन अपने ही देशवासियों के सिर कलम कर रहे है। 

 

 

इस दृश्य में एक रोमन सैनिक, मार्कस औरेलियस को एक सारमेशियन (पूर्वी यूरोप में रहने वाली शक जाति) का कटा हुआ सिर दिखा रहा है।

 

 

 मंगोल

मंगोल जाति चीन की उत्तरी सीमा पर निवास करती थी, 13वी सदी के आरंभ में चंगेज़ खान ने सभी मंगोलों को संगठित करके मंगोल साम्राज्य की नीव डाली जो उस समय के ज्ञात विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य था। इसका प्रसार पूरब में चीन से लेकर पश्चिम में भूमध्यसागर था। मंगोल अपनी क्रूरता के लिए भी बहुत प्रसिद्ध रहे है, विशेष कर युद्ध में शत्रु सेना के साथ अपने बर्ताव के लिए।

 

मंगोल सेना का यूरोप की सयुंक्त सेना से युद्ध, लेगीनिका का युद्ध (लिग्निट्ज़, 1241 ईसवी) के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में यूरोप के कई बड़े देशों की सेनाओ ने संगठित होकर मंगोलो के विरुद्ध मोर्चाबंदी की, लेकिन उन्हे बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, यूरोपियन सैन्य कमांडर और सिलेसिया के शासक हेनरी-II को पकड़ कर उसका गला काट दिया गया और नरमुंड को भाले की नोक पर लगाकर जीत के इनाम की तरह घुमाया गया।

 

मंगोल घुड़सवार यूरोप के निवासियों का मनोबल गिरने के लिए, सिलेसिया के शासक हेनरी द्वितीय का कटा सिर किले के प्रहरियों को दिखाते हुये (पेंटिंग 1430 ईस्वी, संत हेड्विग का चर्च)

  


निशापुर, ईरान पर मंगोल सेना का हमला

सेलडेक चेपल, कुटना होरा, चेक रिपब्लिक

मंगोलों ने 1221 ईसवी में निशापुर नगर को बर्बाद कर दिया था, इस युद्ध में चंगेज़ खान का दामाद तोकुचार मारा गया था, इसलिए उसकी बेटी ने अपने पति की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए नगर के हर एक नागरिक को कत्ल करने की मांग रखी। केवल 10 दिनों के भीतर चंगेज़ खान की सेना ने 17 लाख के इस नगर में लगभग हरेक व्यक्ति को मार कर उनके नरमुंडो से एक विशाल पिरामिड का निर्माण किया, नरसंहार के पश्चात यह नगर मानवविहीन हो गया और काफ़ी समय पश्चात मुख्य नगर के उत्तर में एक नए छोटे से शहर को बसाया गया।

 

 

तैमूरलंग

तैमूरलंग (तिमुर या तैमरलेन), चौदहवी सदी में पूरे मध्य और दक्षिण एशिया में आतंक का पर्याय था।  उसका जन्म 1336 ईस्वी में तुर्को-मंगोल परिवार में समरकन्द के पास केश नगर में हुआ था, जो वर्तमान उज्बेकिस्तान में स्थित है, और मृत्यु 1405 ईसवी में चिमकेंत, कजाकिस्तान में हुयी। तैमूर को अपने भारत, बगदाद और फारस पर हमलो और बर्बरता के लिए जाना जाता है। जहां-जहां भी उसने हमले किए वहाँ के निवासियों का भयंकर नरसंहार किया, लोगो के शवो से पिरामिड और मीनारे बनवाई। 

 

और उसने अपने इन कुकृत्यों को बड़े गर्व से इतिहास में दर्ज भी करवाया है। सभ्य देशो के निवासी आज भी तैमूर को आतंक का पर्याय मानते है परंतु विडम्बना ही है कि तुर्की मूल के लोग आज भी तैमूर से अपने आप को जोड़ने में गर्व महसूस करते है, उज्बेकिस्तान जैसे अन्य मध्य एशियाई देशो में तैमूर का गौरव किसी देवता से कम नहीं है।

 


1.) तैमूरलंग ने ईसवी 1387 में जब ईरान की राजधानी इस्फ़हान पर हमला किया तो वहाँ के पचत्तर हज़ार निवासियों की हत्या कर दी और उनके कपाल से करीब अट्ठाईस विशाल कोलेमीनारो (नरमुंडो की मीनार) का निर्माण करवाया जिसमे से प्रत्येक में 1500 नरमुंड लगे हुये थे, इससे उसकी हैवानियत का पता चलता है।

ऐसे ही मनुष्यों के असंख्य अस्थिया समीप के टीले से मिली है। इस टीले की सामान्य स्थिति यह है कि यह मुख्य पहाड़ी के पूर्व में स्थित है और ऊँचाई लगभग 25 मीटर है, इसका नाम कुलाह मीनार रखा गया है, और इस प्राचीन स्थल को 12 सितंबर, 1980 को ईरान के राष्ट्रीय स्मारकों की सूची में दर्ज किया गया है।

 

2.) 1393 ईसवी में बग़दाद जीतने के पश्चात तैमूर ने 90,000 बग़दाद वासियों के सिर कटवा दिये, इन नरमुंडो से तैमूर लंग ने 120 कुलाह मीनार (नरमुंडों की मीनार) का निर्माण करवाया। संदेश बिल्कुल सीधा और स्पष्ट था कि तैमूर से उलझना बुद्धिमानी नहीं है।

  

3.) 1398 ईसवी में भारत की तरफ बढ़ते हुये तैमूर ने चित्राल-स्वात (अफगानिस्तान) क्षेत्र में वहाँ के मूर्तिपूजकों सिर कलम कर, नरमुंडो से मीनारों का निर्माण करवाया था।

4.) ईसवी 1398 में, तैमूरलंग ने भटनेर के किले पर हमला करके वहाँ के शासक राव दूलचंद एवं उसके पुत्र को किले की दीवार से बाँध कर मार डाला और उसके एक-एक सैनिक को मौत के घाट उतार दिया था।

 

5.) ईस्वी 1398 में, दिल्ली के अपने मार्ग में तैमूरलंग ने दो हज़ार जाटों को पकड़ कर मौत के घाट उतारा था।

 

6.) ईसवी 1398 में, दिल्ली पहुचने के तुरंत बाद तैमूर ने एक लाख हिन्दू युद्धबंदियों को मौत की नींद सुला दिया। इसके बारे में वह अपनी आत्मकथा तूज़ुक-ए-तैमूरी में कहता है कि "मैंने तुरंत अपने सेनानायकों के माध्यम से सेना में घोषणा करवा दी कि लश्कर में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति जिसके भी पास काफिर ग़ुलाम है उसे तुरंत मृत्यु के घाट उतार दे, और जो कोई भी मेरे आदेश कि अवहेलना करता है, उसकी हत्या कर दी जाएगी एवं उसकी संपत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाएगी। जब यह आदेश इस्लाम के गाज़ीओ को पता चला, तो उन्होने अपनी तलवारे निकाल ली और एक-एक करके अपने सभी काफिर गुलामो के सिर कलम कर दिये। उस एक दिन में, एक लाख नापाक मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) का वध कर दिया गया। यहाँ तक कि मेरे साथ आए शेख़/मौलाना जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी को नहीं मारा था, ने पन्द्रह गुलामों का स्वयं अपने हाथो से वध किया।


and I immediately directed the commanders to proclaim throughout the camp that every man who had infidel prisoners was to put them to death, and that whoever neglected to do so, should himself be executed and his property given to the informer. When this order became known to the champions of Islam, they drew their swords and put their prisoners to death. One hundred thousand infidels, impious idolaters, were slain on that day.” Even the sheikh/maulana accompanying the troops, who had never killed a man in his life, slew fifteen prisoners.

 

7.) ईसवी 1398 में, दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन मुहम्मद तुगलक को पराजित करने के पश्चात तैमूरलंग ने 3 दिनों तक हिन्दुओ का कत्ले आम मचाया। ऐसा कहा जाता है कि मृतकों के नरमुंडों से एक पिरामिड बन गया था और धड़ो की वजह से पूरे शहर का आकाश कौवों, गिद्धों और चीलों के झुण्डो से भर गया। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में इस तरह की बर्बरता बहुत लंबे समय से नहीं देखी गयी थी।

 

8.) 1400 में तैमूर ने मिस्त्र के मामलुक सुल्तान नासिर-अलदीन-फराज़ द्वारा शासित सीरिया पर हमला बोल दिया और अलेप्पों पर नवम्बर 1400 में हमला करके वहाँ के निवासियों का कत्ले आम मचा दिया। 20,000 लोगों के नरमुंड से शहर के बाहर एक मीनार का निर्माण करवाया गया। हमा, बालबेक कब्जाने के पश्चात उसने दमिश्क पर घेरा ड़ाल दिया।
9.) एक चश्मदीद के अनुसार, जब तैमूर ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया और वहाँ पर मारकाट मचाने लगा तो नगर के बड़े इमाम और मौलवियों ने तैमूर के पास जाकर उससे अल्लाह के नाम पर रहम माँगी। तैमूर ने उन्हे झूठी दिलासा देते हुये परिवार सहित उमैंयय्द मस्जिद में छिपने के लिए कहा, जब मस्जिद में 30,000 से ज्यादा लोग इकट्ठे हो गए तो उसने दरवाजों को बाहर से बंद करवाकर मस्जिद में आग लगवा दी, मस्जिद जल गयी और इसके अंदर सभी लोग ज़िंदा भुन गए। (ऐसा उसने इसलिए किया क्यूंकी वह एक शिया था और सुन्नी दमिश्क से कर्बला की लड़ाई का बदला लेना चाहता था।)
मस्जिद के समीप ही, उत्तर में पुरानी दीवार के बाहर मैदान में बाकी बचे लोगों के गले काट कर मीनार बनवाई गयी, वर्तमान में इस स्थान पर एक चौराहा है और स्थान का नाम "बुर्ज अल-रूस (नरमुंडों की मीनार)" चौराहा एवं पार्क है।

 

10.) ईसवी सन 1400 में, तैमूर ने जार्जिया और आर्मेनिया में हमला करके यहाँ के शहरो को मानवविहीन कर दिया ।

 

11.) जून 1401 में, तैमूर ने बगदाद में हमला करके यहाँ के 20,000 निवासियों की हत्या कर दी। उसने अपने सैनिको को आदेश दिया कि प्रत्येक सिपाही कम से कम 2 नरमुंडों के साथ लौटे। फ़रमान का खौफ़ इतना ज़्यादा था कि, सिपाहियों ने पहले तो वहाँ के निवासियों को मारा और जब वे खत्म हो गए तो फिर पहले के युद्धों में पकड़े गए युद्धबंदियों के सिर काट के सुल्तान के सामने प्रस्तुत किए, उसके बाद जब वे भी समाप्त हो गए तो उन्होने अपने गुलामों के सिर काट के तैमूर के सामने प्रस्तुत किए । लेकिन जब सारे गुलाम भी मारे गए तो उन्होने अपनी बीवीयों की हत्या करके उनके सिर सुल्तान के सामने प्रस्तुत किए।

 

12.) दिसम्बर 1402 में, तैमूर ने नाइट होस्पीटेलर्स (क्रूसेडर्स) के नगर स्मयरना (मध्यपूर्व) को पराजित करके “गाज़ी” की पदवी धारण की और शहर के सभी ईसाई निवासियों का बेरहमी से सँहार कर दिया।

 

 

 बाबर

तैमूर के ही वंश में आगे चलकर बाबर पैदा हुआ जिसे गृहयुद्ध के चलते मध्य एशिया के राज्य को छोड़ कर दक्षिण की तरफ पलायन करना पड़ा, यहाँ से अफ़ग़ानिस्तान होते हुये बाबर ने भारत में प्रवेश किया और मुग़ल साम्राज्य की नीव डाली। बाबर ने अपने परदादा की तरह ही भारत में बर्बरता की कई मिसाले पेश की है जो उसने अपनी आत्मकथा बबरनामा में दी है। इसके अलावा बाबर के दरबारी लेखाकारों एवं अन्य समकालीन इतिहासकारों ने मुगलो की बर्बरता के कारनामो का बखूबी बयान किया है। 

 

1.) बाबर ने अपने भारत हमले के दौरान कसूर, अफ़ग़ानिस्तान में शत्रु सैनिकों और जनता ने आत्मसमर्पण कर दिया तो उनके नरमुंडों से एक मीनार खड़ी की गयी थी, (तूज़ुक-ए-बाबरी) 

 



2.) आगे प्रस्थान करने के बाद हांगु नामक नगर के किले पर भी 200 लोगो के सिर से मीनार खड़ी की गयी

 

3.) 1512 ईसवी (918 हिजरी) में कोहबूर पर हमला करके यहाँ के निवासियों के सिर कलम कर दिये। करमाश (करमान) पर्वत के पास अफगानों की एक छोटी सी टुकड़ी को हराने के पश्चात बाबर ने यहाँ एक और नरमुंड मीनार का निर्माण करवाया था।
4.) बन्नू शहर, अफ़ग़ानिस्तान के संगुर (किले) में लोगो को मारने के बाद एक कुलाह मीनार(नरमुंडो की मीनार) खड़ी की गयी थी। 
5.) बाबर के साथी नासिर मिर्ज़ा ने काबुल के समीप घिलजी अफगानों के नरमुंड से एक और मीनार का निर्माण करवाया था। 
6.) 1519 ईसवी में बाबर ने बाजौर, अफ़ग़ानिस्तान में नरमुंडो कि मीनार का निर्माण करवाया।  
 
 
दुश्मनों के नरमुंडों का निरीक्षण करता हुआ बाबर, वाकियात-ए-बाबरी (16वी सदी)

7.) बाबर की सेना द्वारा कटलाँग में दिलजाक अफगानों के सिर काटे गए। 15 फरबरी 1519 को बाबर के आदेश पर मकाम में शहबाज़ कलंदर के मकबरे को तोड़ दिया गया । 

8.) बयाना में बाबर के सेनापति काँसमत ने लोगो के सिर काट कर बाबर के पास भिजवाए थे। 1527 ईसवी में खनवा के युद्ध के पश्चात बाबर ने हिन्दुओ के सिर काट कर पिरामिड बनवाया और मीनारे खड़ी की। यह स्थान युद्ध स्थल और बाबर के शिविर के बीच स्थित कोह-बच्चा (छोटी पहाड़ी) था, इस पहाड़ी पर हिन्दुओ के नरमुंडो से मीनारे खड़ी की गयी।

 

चँदेरी के दुर्ग पर बाबर का हमला, 1528 ईसवी

9.) चँदेरी में बाबर की जीत के पश्चात 1000 हिन्दु स्त्रियों ने सामूहिक जौहर किया था और 3000 से 4000 हिन्दुओ को बाबर की सेना ने मार डाला था, इसके बाद चँदेरी के उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी पर हिन्दुओ के नरमुंडो से कुलाह मीनार (नरमुंडो की मीनार) का निर्माण करवाया गया। 


 

10.) 1530 ईसवी में सरहिंद पहुँचने के पश्चात बाबर ने कैथल के एक गाँव में एक विद्रोही हिन्दू सरदार मोहन मुनधर को मारने के लिए सेना भेजी, उस दिन गाँव में विवाह समारोह चल रहा था, बाबर के सैनिको ने वहाँ लगभग 1000 लोगो के सिर कलम कर नरमुंडो की मीनार खड़ी की थी।

 

 

 

MUGHAL EMPEROR HUMAYUN BESIEGING THE BUKKUR FORT, SIND (PAKISTAN) IN 1541 AD

 अकबर

 

बाबर के पश्चात उसके पुत्र हिमायूं ने मुग़ल सत्ता संभाली, लेकिन वह अपनी पिता की तरह उतना दूरदर्शी और योग्य न था और शीघ्र ही शेरशाह सूरी, नामक अफगान नेता ने उसे पदच्युत करके सत्ता हथिया ली, बेचारे हिमायूं को उससे बचकर जगह-जगह भगना पड़ा। लेकिन उसका पुत्र अकबर बहुत ही बुद्धिमान राजा साबित हुआ और अपने साथियों की मदद से उसने एक बार फिर दिल्ली पर कब्जा कर लिया। 

  

अकबर ने मुग़ल सल्तनत को बहुत मजबूत बनाया, इसके लिए उसने भय और लालच दोनों का सहारा लिया, अकबर के समय में भी काफी युद्धो में बर्बरता दिखाई गयी है, उसके उल्लेख निमन्वत है।

  

अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई जीतने के पश्चात हेमू की सेना के हिन्दू और अफ़गान सिपाहियो के नरमुंडों से एक मीनार का निर्माण करवाया था।

 

चित्तौड़गढ़ के किले की दीवार ध्वस्त करने के बाद हाथियो से चढ़ाई करते हुये मुग़ल सेना

 

सन 1568 में चित्तौड़ की विजय होने के पश्चात अकबर ने एक बार फिर वहाँ नरमुंडों की मीनार खड़ी की थी। 
 
 


 

 जहाँगीर

जहाँगीर अकबर का ज्येष्ठ पुत्र था और ईसवी 1605 में अकबर की मृत्यु के बाद मुग़ल बादशाह बना। बादशाह बनते ही सबसे पहले उसने अपने विद्रोही पुत्र खुसरो के विरुद्ध एक अभियान छेड़ा और पंजाब में गुरु अर्जन देव को भयानक यातना देकर मार डाला, जहाँगीर के समय में कई यूरोपियन यात्री भारत के भ्रमण पर थे, उन्होने अपने यात्रा वृतांत अपनी-अपनी भाषाओ में लिखे है। इनमे से कई यात्रा वृतांन्तो में उस काल की मुग़ल राजनैतिक दशा, युद्ध एवं अन्य व्यापारिक कामकाजों, शत्रुओ को यातना देने के तरीको के बारे में विस्तृत चर्चा की गयी है। हमारी जानकारी के लिए ये यात्रा वृतांत प्रमुख एवं प्राथमिक स्त्रोत है।
 
 
जहाँगीर के आदेश पर सिक्खो के पंचम गुरु अर्जुन देव को उनके अनुचरो सहित, भयानक यातनाए देकर हत्या कर दी गयी, शहजादा खुसरो (हाथी पर) के सहयोगियों को सूली से बेधकर नगर के चौक पर लटका दिया गया। (1606 ईसवी)

 

Kalle Menar – Minaret built by the bones and skulls of hunted animals Published in Voyage, ou relation de l'etat present du royaume de Perse in 1695 by Nicolas Sanson

ऐसा प्रतीत होता है कि जहाँगीर के समय तक "नरमुंडो की मीनार" (कुलाह मीनार) मुगल सल्तनत का एक मानक पर्याय बन चुकी थी। हरेक युद्ध में मुगल फौज की विजय के पश्चात शत्रुओं के नरमुंड मुगल राजधानी (आगरा, दिल्ली) में सबूत के तौर पर भेजे जाते थे, जहां सार्वजनिक स्थानो पर इनकी नुमाइश होती थी। इसके अलावा जहाँ-जहाँ भी विद्रोह फैलता था, वहाँ के निवासियों में खौफ़ बैठाने के लिए मुगल सरदार बड़ी संख्या में ग्रामीणों का नरसंहार करके, नरमुंडो से मीनार या पिरामिड तैयार करवाते थे।

कुछ यूरोपियन यात्रियों का मुग़ल सल्तनत के दौरान कुलाह मीनारों (नरमुंडो की मीनार) के बारे में प्रेक्षण निमन्वत है।

 पृष्ठ सं॰ 72-73, पीटर मुंडी की यूरोप और एशिया में यात्राए, भाग - 2
"एक दिन (जब मैं व्यस्त नहीं था) मैं शहर (आगरा) की आवो-हवा लेने के लिए बाहर गया, मेरे रास्ते के एक तरफ काफी छोटी-छोटी मीनारे बनी हुयी थी, जिनके चारो ओर मनुष्यों के सिर चुनवाये गए थे। यह मीनारे कुछ इस तरह बनी हुयी थी जिनमे छोटे छोटे कबूतरखाने की तरह छिद्र बने थे और इन मीनारों की ऊँचाई 3 से 4 यार्ड से ज्यादा नहीं थी लेकिन फैलाव काफी था। यह नरमुंड उन चोर और लुटेरो के थे जिन्हे इस राज्य के फ़ौजदार ताज खान (Tage Ckaun) ने पकड़ा था। इन चोरों के बाक़ी धड़ो को रास्ते में लगे आम के पेड़ों से उल्टा लटकाया गया था, हम लोग इसी रास्ते से निकले थे। इन पकड़े गए चोरों में से कुछ को ज़िंदा ही भून दिया गया था और बाकियों के सिर कलम कर दिया गये। इसके अलावा शहर के चारों ओर काफी सारी लाशे सलाखों पर लटकी हुयी थी। ऐसी मीनारे आमतौर से बड़े शहरों के आस पास होती है।
Pg. 72-73, Travels of Peter Mundy in Europe and Asia, Part-2
One day (my business permitted mee) i went to take the ayre the towne, and att one side thereof were many munaries or little turretts with many mens heads round about it, made into Morter. It is built of purpose, in forme like a Pigeon howse, not exceedinge 3 or 4 yards in height and soe many more in compasse. Theis heads were of certaine Theeeves lately taken by the Fousdare (Fauzdar) of this government. Tage Ckaun (Taj Khan). There bodies were hunge upp by the heeles in a grove of Mango trees, and by which wee also passed through. Of theis Theeves soe lately taken, some were roasted alive, and the rest their heads cutt off; Alsoe about the Towne were many of their bodyes on Stakes. Munares are comonly neere to great Citties.


किले की दीवारों से लटके हुये नरमुंड, 1604, आगरा (उदाहरण उद्घृत: सादी- कुल्लीयात)

पृष्ठ सं॰ 90, पीटर मुंडी की यूरोप और एशिया में यात्राए, भाग - 2
बकेवर (भरथना, इटावा) से आगे चलकर 200 से ज्यादा कुलाह मीनारे थी जिनमे नरमुंड चुनवाए गए थे, किसी में 30, तो किसी में 40 छिन्न भिन्न मस्तक दिख रहे थे। यह कारनामा बादशाह के फरमान पर अब्दुल्ला ख़ान ने अंजाम दिया था, जो अब पत्तन का गवर्नर है। क्योंकि यह मार्ग विद्रोहियों और चोरों से इतना ज्यादा भरा था, कि यहाँ से सुरक्षित निकल पाना असंभव था, इसलिए बादशाह ने उनका सफाया करने के लिए अब्दुल्ला ख़ान को 12,000 घुडसवारों और 20,000 पैदल सेना के साथ भेजा, जिसने उनके शहर को नष्ट कर डाला, उनकी पूरी संपत्ति लूट ली, उनकी औरते और बच्चों को गुलाम बना दिया और उनके प्रमुख सरदारों के सिर काट कर मीनारों में चुनवा दिया।
- मुंडी ने यहाँ अब्दुल्ला ख़ान फिरोज़ जंग के बारे में बताया है जिसे जहाँगीर ने 6,000 की मानसबदारी दी थी। अब्दुल्ला ख़ान ने 1628-29 में एरिच में हिन्दुओ के विरुद्ध एक बड़ा सैन्य अभियान किया था। इस व्यापक नरसंहार का वर्णन अमिल सालेह में दर्ज किया गया है।

Pg. 90, Travels of Peter Mundy in Europe and Asia, Part-2
From Buckever hither were above 200 Munaries (Minars) with heads mortered and plaistered in, leavinge out nothing but their verie face, some 30, some 40, some more some lesse. This was Abdula Ckauns (Abdulla KHans) exploits who is now Governour of Puttana), by the kings Order. For this way was soe pestered with Rebbells and Theeves, that there was noe passings; soe that the Kinge sent Abdulla Ckaun, with 12000 horse and 20000 foote to suppresses them, whoe destroyed all their townes, tooke all their goods, their wives and children for slaves and the cheifest of their men, causeing their heads to bee cutt of and to be immortered as before [depicted] (Mundy referring to Abdullah KHan Firuz Jung who was raised to rank of 6000 Mansabdar by Jahangir. it was Abdullah khan expedition against Erich in 1628-29 and his slaughter of Hindus there as recorded in Amil Saleh.



पृष्ठ सं॰ 180, पीटर मुंडी की यूरोप और एशिया में यात्राए, भाग - 2
7 दिसंबर 1632, इस स्थान के नज़दीक (झूंसी, प्रयाग), सैफ ख़ान (zeffe chaune) ने 50 से 60 लोगों सिर काट कर आम के पेड़ से लटकाए हुये थे। सिरों की नाक से रस्सी बाँध कर पेड़ से लटकाया गया था।
Pg. 180, Travels of Peter Mundy in Europe and Asia, Part-2
the 7th December 1632, Neare this place (Jussee, Jhusi), on the Mango trees, Zeffe Ckaune (saif Khan) had caused 50 or 60 mens heads to be hunge upp by a stringe run through their noses,


पलवल की कोस मीनार, क्या इन मीनारों में बने छिद्र नरमुंडो को टाँगने के लिए थे?


स्टोरीया डो मोगोर भाग- 1, निक्कोलाओ मानुस्सी, वेनेशियन यात्री, 1653-1708 (विलियम्स इरविन अनुवादक)
"जब भी कोई सैन्य कमांडर कोई युद्ध जीतता है तो ग्रामीणों के नरमुंड जीत की ट्रॉफी के तौर पर आगरा शहर भेजे जाते है, यहाँ इन्हे जीत के सबूत के तौर पर शाही चौराहे पर सभी लोगो के सामने प्रदर्शित किया जाता है। 24 घण्टे बाद इन कटे हुये सिर को शाही सड़क पर भेज दिया जाता है, यहाँ इन सिरों को पेड़ो की शाख से या इसी मक़सद के लिए बनाई गयी मीनारों के छिद्रों में घुसा दिया जाता है। हरेक मीनारों में 100 सिर तक लगाए जा सकते है। मैंने शहर (आगरा) में कई बार ग्रामीणों के कटे हुये मस्तकों से बने ढ़ेर देखे है। एक बार मैंने 10,000 नरमुंड देखे, उनके गंजे सिर थे और ज्यादातर की लाल रंग में रंगी हुयी लंबी मूछे थी। मेरे 34 वर्ष के काल में जब मैं मुगल सल्तनत में रहा था।, मैंने आगरा से दिल्ली कई बार सफर किया और हरेक बार सड़क के किनारे नए नरमुंड देखने को मिलते थे। और उन चोरों जिन्होने राहजनी या लूट की थी उन्हे सजा के तौर पर सिर कलम कर शव पेड़ से लटका दिया जाता था। इसलिए मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों को इन सडी हुयी लाशों से उठती हुयी बदबू एवं ड़र की वजह से नाक बन्द करके और बहुत तेजी-तेजी से निकलना पड़ता था।
Page 134 Storia Do Mogor Part 1, Niccolao Manucci, Italian Traveller, 1653-1708 (Williams Irvine)
 "everytime that a general won a victory the heads of the villagers were sent as a booty to the city of Agra to be displayed in the royal square before all the people as a proof of their success. After twenty four hours the heads were removed to the imperial highway, wherer they were hung from the trees or deposted in holes on pillars built for this purpose. each pillar could accomodate one hundred heads. Many a time have I seen in the city piles of these villagers heads. Once I saw ten thousand of them; they could be recognized by their being shaven, with huge moustachees, mostly reddish in colour. In the thrity four years that I dwelt in this Mogul Kingdom I travelled often from Agrah to Delhi, and every time there was a number of fresh heads on the roadside and many bodies of thieves hanging from the trees, who were punished thus for robbing on the highway. Thus passers-by are forced to hold their noses on account of the odour from the dead, and hasten their steps out of apprehension of the living.


एडवर्ड टेरी, वोएज टू ईस्ट इण्डिया 1655, पृष्ठ सं॰ 353-354
हत्या और चोरी जैसी वारदातों पर वे मृत्युदण्ड (मुग़ल शासक) देते है, और मृत्यु
किस तरह से देनी है इसका फैसला काजी (न्यायाधीश) अपनी मनमर्जी से करते है। कुछ दोषियों को फाँसी लटका दिया जाता है, कुछ के सिर काट दिये जाते है, कुछ दोषियों को सलाखों से दागा जाता है और कुछ को गरम सलाखों से बेध कर लटका दिया जाता है (यह मृत्युदण्ड देने का बहुत निष्ठुर एवं निर्दयतम तरीका है, इस तरीके में काफी यातना और कष्ट होता है।), कुछ को जंगली जानवर टुकड़े टुकड़े कर देते है, कुछ हाथी द्वारा मारे जाते है, कुछ को विषेले सर्पो द्वारा डसा कर मौत दी जाती है। जिन लोगो को हथियों से मरवाया जाता है (हाथी एक विशाल जानवर है जिसे मनुष्यों को मारने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।) कुछ इस प्रकार मृत्युदण्ड देते है, पहला यदि इस विशाल जानवर को बेचारे भयभीत अपराधी को तुरंत मृत्युदण्ड देना होता है तो, सामने के तरफ गिरेपड़े अपराधी के ऊपर हाथी अपना विशाल पैर रख कर कुचल देता है। परंतु यदि उस अपराधी को तड़पाकर मारना हो तो हाथी एक-एक करके उसकी हड्डियाँ तोड़ता है इससे उस व्यक्ति को मरते समय काफी वेदना सहनी पड़ती है। हाथी पहले पैर की हड्डियाँ तोड़ता है फिर कूल्हे की, फिर उसके दोनों हाथ की हड्डियाँ तोड़ता है, इतना होने के बाद उस व्यक्ति को टूटी हड्डियों के साथ तिल-तिल मरने के लिए यो ही छोड़ दिया जाता है।
Edward Terry, Voyage to East India 1655 page 353-354
Murder and theft they punish with death, and with what kind o death the judge pleasseth to impose; for some malefactors are hang'd, some beheaded, some impaled, or put upon sharp stakes (a death which hath much cruelty, and extreme torture and torment in it) some are torne in pieces by wild beasts, some kill'd by elephants, and others stung to death by snakes. those which are brought to suffer death by elephants (some of which vast creatures are train'd up to do execution on malefactors) are thus dealt withal; first, if that over-grown beast be commanded by his rider to dispatch that poor trembling offender presently, who lies prostrate before him, he will with his broad foot immediately press him to death; but if that wretched creature be condemn'd ita mori, ut fe more fentiat, fo to die as that he may feel totures and torments in dying (which are so many several deaths) the elephant will break his bones by degreees, as men are broken upon the wheel, as first his legs, then his thighs, after that the bones in both his arms, this done, his wretched spirit is left to breath its last out of the midst of those broken bones.

 

इस प्रकार हम देखते आ रहे है कि इस्लामिक जगत विशेषकर तुर्को और मंगोलों के इस्लामीकरण के बाद विश्व में नरमुंडों की मीनारों के बहुत सारे किस्से इतिहास में रेकॉर्ड किए गए है। नीचे हम मध्ययुग की उन सभी इमारतों का का विवरण दे रहे है जो इतिहास में किसी न किसी कारण से नरमुंडों से जुड़ी रही है।

 

 

 भारत की संभावित कुलाह मीनारे

 अहमदनगर के किले का बुर्ज और गंदे नाले का द्वार

अहमदनगर का किला निज़ाम वंश के प्रथम शासक मालिक अहमद निज़ाम शाह I द्वारा 1427 ईसवी में बनवाया गया था, अहमदनगर का नाम भी इनके नाम पर ही रखा गया है, 1562 ईसवी के दौरान इसमे बड़े परिवर्तन हुसैन निज़ाम शाह के द्वारा करवाए गए। इस किले के साथ इतिहास की एक बहुत प्रसिद्ध घटना जुडी हुयी है ।

अलिया रामाराया, विजयनगर के सेनापति थे। जिनके नेतृत्व में 1565 ईसवी में विजयनगर की सेना दक्कन के सुल्तानों (हुसैन निज़ाम शाह, अली अदिल शाह, अली बरीद शाह और इब्राहीम कुतुब शाह) की सयुंक्त कमान से मुक़ाबला करने के लिए तालीकोटा पहुंची थी।

युद्ध में विजयनगर की बहुत करारी हार हुयी थी और सत्तर वर्षीय रामाराया को पकड़ लिया गया। पकड़े जाने के बाद उन्हे बन्दी बनाकर तोपखाने के प्रमुख चुलेबी रूमी खान के पास ले जाया गया, जिसने उन्हे फौरन हुसैन निज़ाम शाह के सामने प्रस्तुत कर दिया। 

 


हुसैन निज़ाम शाह ने रामा राया के सामने दो विकल्प रखे, पहला पराजय स्वीकार करके इस्लाम स्वीकार ले तो उनकी जान बख्श दी जाएगी, लेकिन रामा राया ने अपना धर्म त्यागना उचित नहीं समझा और निज़ाम शाह ने रामा राया का सिर कलम करने का आदेश दे दिया। उनका सिर काट कर एक लंबे भाले के नोक पर लगाया गया और युद्ध क्षेत्र में ऊंचे स्थान पर गाड़ दिया गया जिससे हिन्दू शत्रुओ को अपने सेनापति का सिर दिखा सके। निज़ाम शाह अपनी इस जीत से इतना प्रसन्न हुआ की युद्ध पश्चात उसने रामराया का छिन्नभिन्न मस्तक पूरे युद्धस्थल में घुमाया।

 


"वे इस पर शांत नहीं हुये बल्कि यह घटना हिन्दुओ के प्रति मुसलमानों के अन्दर भरी घृणा एवं उस काल में कट्टर इस्लामिक सोच का एक ज्वलंत उदाहरण है, जब हम वर्तमान में रामा राया के पत्थर के बने सिर को बीजापुर के किले के नाली के मुहाने पर देखते है; और जानते है कि असली सिर को लाल रंग एवं तेल से सुरक्षित करके प्रत्येक वर्ष युद्ध की वर्षगांठ वाले दिन यादगार के तौर पर अहमदनगर के मुसलमानों को दिखाया जाता है। यह सिलसिला पिछले 254 वर्षो से अभी तक चला आ रहा है। यह आज भी रामाराया का सिर कलम करने वाले के परिवार के पास सुरक्षित रखा है।
कुछ जानकारो द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि इस युद्ध के दौरान, बाद की कार्रवाई में और पीछा करने के दौरान लगभग एक लाख काफ़िरों की हत्या कर दी गयी।"

-पृष्ठ सं॰ 130, भारत में मुस्लिम सत्ता के उत्थान का इतिहास भाग III, मुहम्मद कासिम फरिस्ता (जॉन ब्रिग्स अनुवादक)

striking example at once of the malignity of the Mahomedans towards this hindu prince and of the depraved taste of the times, when we see a sculptured representation of ramraj's head, at the preset day, serving as the opening of one of the sewers of the citadel of beejapur; and we know that the real head, annually covered with oil and red pigment, has been exhibited to the pios mahomedans of ahmadnagar, on the anniversary of the battle, for the last two hundred and fifty four years by the descendants of the executioner, in whose hans it has remained till the present period.

It is computed, by the best authorities, that above one hundred thousand infidels were slain during the action and in the pursuit.
- Pg. 130, History of Rise of Mahomedan power in India, vol. III Muhammad kasim Farista (John Briggs)



ऐसे ही किसी नाले से रामराया का पत्थर का सिर लटक रहा होगा

किले के बुर्ज पर बने ये छेद भालो की सहायता से नरमुंड लटकाने के काम में आते होंगे

 

 

 बिजय मण्डल की मीनार, दिल्ली

विजय मण्डल की मीनार, दिल्ली के जहाँपनाह (मालवीय नगर) इलाके में स्थित एक तुग़लक कालीन इमारत है। मीनार के निर्माण एवं यह किस उद्देश्य के लिए प्रयोग की जाती थी, इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह इमारत अलाउद्दीन खिलजी के समय में बनवाया गया था परन्तु मुहम्मद तुग़लक़ के समय में यहाँ बड़े पैमाने पर नये निर्माण करवाये है, जहाँपनाह क्षेत्र में कई पुराने महलों, मस्जिदों इत्यादि के खण्ड़हर मौजूद है लेकिन बिजय मण्डल की यह मीनार बिल्कुल भिन्न है। अभी तक पुरातत्ववेत्ता इसका सही इस्तेमाल पता नहीं कर पाये है, कुछ के अनुसार इस ऊँची मीनार का प्रयोग तुगलक अपनी सेना के ऊपर निगरानी के लिए करता था, कुछ के अनुसार सुल्तान इस इमारत से अपनी प्रजा को दर्शन दिया करता था। हमारे अनुमान के मुताबिक यह एक प्रसिद्ध मीनार थी और इस मीनार के ऊपर एक दो या तीन मंजिलें भी रही होगी, और मीनार की बाहरी दीवारों पर कुछ फ़ासलों के अन्तर पर भालों या लोहे की सलाखों को फंसाने के लिए छेद बने हुये थे। दिल्ली सल्तनत के बड़े शत्रुओं, जैसे की बड़े हिन्दू शासक, सरदार या विद्रोहियों का सिर कलम करके, नरमुंडों को लोहे की सलाखों से बेध कर मीनार के छेदों से लटकाया जाता होगा, जोकि तुर्की मूल के मुस्लिमो का प्रिय शगल था। दिल्ली की एक और नरमुण्ड मीनार (चोर मीनार) से इसकी कुछ समानताये है। मीनार की छत बनी हुयी है, और इसमे अंदर से चढ़ने के लिए बगल से सीढ़ी भी है। मीनार का एक हिन्दू नाम होना भी अपने आप में एक बड़ी गुत्थी है, हो सकता है कि यह मीनार एवं बाक़ी इमारत किसी हिन्दू मंदिर के ऊपर बनी हो।

 

 चोर मीनार, दिल्ली

चोर मीनार हाल ही में एक बहुचर्चित इमारत बन चुकी है, इस पर शौकिया और पेशेवर दोनों ही तरह से काफी शोध किया गया है। यह मीनार हौज़ खास, दिल्ली में स्थित है और उपलब्ध स्रोतो (लोककहानियों) के अनुसार इसका निर्माण अल्लाउद्दीन खिलजी ने 13वी शताब्दी में करवाया था। यहाँ वह चोरो और लुटेरों के सिर काट कर लटकाता था, मंगोलो को हारने के पश्चात उसने बंदियों के सिर कलम करके इसी मीनार से लटकाए थे।

खिलजी ने, 1305 ईसवी में अली बेग, तारतक और तार्घी के नेतृत्व में मंगोलों के हमले को विफल किया और युद्ध के पश्चात 8,000 मंगोल सिपाहियों के नरमुंडो को इस मीनार से लटका कर प्रदर्शित किया।
वर्तमान में इसकी ऊपरी मंजिले ध्वस्त हो चुकी है और कुल 250 छिद्र बचे है । 
 
हमारे अनुमान के अनुसार यह मीनार 3-4 मंजिल ऊंची रही होगी, और मीनार में कम से कम 1,000-1,500 छिद्र बने होंगे, मीनार का निर्माण स्थाई तौर से नरमुंडो को प्रदर्शित करने के लिए करवाया गया होगा और मीनार इस काम के लिए यह बहुत लंबे समय तक प्रयोग की जाती रही होगी। नरमुंडों को पहले किसी भाले या सलाखों से बेधा जाता था फिर उन भालो को छिद्रों में फंसाया जाता था (नोट: इस तरह की एक चोर मीनार, समरकन्द में भी है। )

 

 

 हिरण मीनार, फ़तेहपुर सीकरी, आगरा

 

 

यह हिरण मीनार, फ़तेहपुर सीकरी, आगरा में स्थिति है अपने नाम और प्रकार से मीनार बड़ी विचित्र लगती है । इस मीनार का निर्माण अकबर ने 16वी सदी के मध्य में करवाया था। कहा जाता है कि इसे अकबर ने अपने सबसे प्रिय हाथी के यादगार के तौर पर बनवाया था। बाद में जहाँगीर ने इस मीनार के आस पास हिरणो का अभयारण्य बनवा दिया और इसका नाम हिरण मीनार हो गया। मीनार की ऊँचाई 21.34 मीटर (70 फीट) है।

जिस प्रकार यह मीनार देखने में अजीब है उसी प्रकार इसको बनाने के पीछे की कहानी भी विचित्र है। हालांकि कहानी का इस मीनार से कोई खास सम्बंध नहीं दिखता क्योंकि इस तरह की और भी मीनारे भारत में मिलती है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मीनार मुग़ल काल में शाही मार्ग पर कारवां सराय के ठीक सामने स्थित थी, उस दौर में कारवां सराय देश विदेश के व्यापारियों, यात्रियों के ठहरने के लिए उत्तम स्थान हुआ करते थे, मध्यकाल में यूरोपीय यात्रियों ने जितने भी नरमुंड मीनारों का वर्णन किया है उनमे से अधिकांश मीनारे बड़े शहरो के बाहर कारवां सराय के समीप ही होती थी जिससे देश विदेश के लोग विद्रोहियों, लुटेरों, अपराधियों के नरमुंड देखकर इसकी खबर देश के अन्य हिस्सो में भी फैला सके। क्योंकि यात्री और व्यापारी अनेक शहरो की यात्राए करते रहते थे, और ऐसी खबरों को जल्दी और बिना किसी खर्चे के दूर तक फैलाने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं हो सकता था।
 

मीनार से लगी ये संगेमरमर की खूंटी हाथी दाँत की तरह अवश्य लगती है परंतु इसका काम बिलकुल भिन्न था, इससे नरमुंडों को टांगा जाता था। ऐसा मानना है कि अकबर की 1573 ईसवी में गुजरात विजयी के बाद इस मीनार से शत्रु शासको और सरदारों के नरमुंडों को टांगा गया था।

आरंभ में ये खूँटियाँ आगे से नोकदार होती थी, लेकिन बीते 400 वर्षो के दौरान आगे के हिस्से या तो तोड़ दिये गए या फिर घिस चुके है। 

 

 हिरण मीनार, शेखूपुरा, पाकिस्तान

यह हिरण मीनार, लाहौर शहर से 40 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में शेखूपूरा नामक नगर में स्थित है। कहा जाता है कि इसे जहाँगीर ने 1606 ईसवी में अपने प्रिय बारहसिंगा "मनसिराज" (मन का प्रकाश) की याद में बनवाया था।   
 

लेकिन हमारी पड़ताल में यह एक औपचारिक यादगार इमारत कम और एक उपयोगी कुलाहमीनार ज्यादा लग रही है जैसा कि हमने अभी तक अन्य मध्यकालीन नरमुंड मीनारे देखी है, इसमे भी मुंडों को टाँगने के लिए उपयोगी छोटे-छोटे छिद्र बने हुये है। आश्चर्य नहीं है कि इस स्थान पर जहाँगीर और फिर शाहजहाँ ने काफी बड़े स्तर पर शाही महल का निर्माण करवाया था। हो सकता है उत्तर पश्चिम के अपने शत्रुओं के नरमुंड वे अपने इसी शाही महल के समीप मीनार पर टंगवाते हो। हालाँकि अन्य विद्वानों का यह पूरा मत है कि इस मीनार का प्रयोग शिकार में मारे गए जानवरों के छिन्नभिन्न मस्तक लटकाने में होता था। मीनार की ऊपरी मंज़िल ढह चुकी है एक अनुमान के अनुसार यहाँ कम से कम 500 कपालों को टाँगने की व्यवस्था थी।


 
 

 नीम सराय मीनार, मालदा, पश्चिम बंगाल

देखने में यह मीनार, अकबर की हिरण मीनार के समान लग रही है, परंतु यह फ़तेहपुर सीकरी से क़रीब 1,400 किलोमीटर दूर मालदा, पश्चिम बंगाल में स्थित है । इस मीनार के साथ किसी हाथी की कहानी नहीं जुड़ी हुयी है। मीनार महानंदा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित एक कारवाँ सराय का हिस्सा हुआ करती थी। मीनार का नाम निम है जिसका फारसी में अर्थ होता है "मध्य", जो कि गौर (लखनौटी) से पांदुआ शहर के बीच में स्थित थी
ऐसा माना जाता है कि मीनार का निर्माण अकबर के समय में किया गया था लेकिन यहाँ हाथी दाँत की खूँटी का सीधा सीधा सम्बन्ध लुटेरों, चोरों और विद्रोहियों के नरमुंडों को टाँगने से था।

 

मीनार की ऊपरी मंज़िल ढह चुकी है अब इसकी कुल ऊँचाई 18.50 मीटर (60 फीट) है, इसका निर्माण ईट और गारे से किया गया था। अपने समय में नरमुंडों को लटकाने के लिए इसमे करीब 500 खूँटियाँ रही होंगी।
 
 

 

 हिरण मीनार, हस्तसल, दिल्ली

पश्चिमी दिल्ली में उत्तम नगर के समीप हस्तसल गाँव में एक अजीब, अन्जानी और खण्डहर मीनार मौजूद है जिसके बारे में ज्यादा ऐतिहासिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। वस्तुता प्रथम दृष्टया देखने पर यह मीनार, महरौली स्थित कुतुब मीनार की नकल जैसी ज्यादा प्रतीत होती है। इस मीनार की ऊँचाई करीब 16.87 मीटर (55 फीट) है, कहा जाता है कि मीनार को शाहजहाँ ने 1650 ईसवी में कुतुब मीनार की तर्ज पर एक शिकारगाह के नजदीक बनवाया था। अनुमान के अनुसार इस मीनार की कुल पाँच मंज़िले थी और सबसे ऊपर एक छतरी थी, अट्ठारहवी सदी में मीनार की ऊपरी दो मंज़िले ढह गयी । मीनार को बनवाने का उद्देश्य, ऊँचाई से जंगली पशु एवं पक्षियों का शिकार करना और मीनार से उनके कपालों को लटकाना था जैसा कि अन्य समकालीन मुग़ल हिरण मीनारों में देखा गया है।
 
 

 खूनी दरवाजा, चँदेरी

यह दरवाजा चंदेरी किले के पश्चिम में स्थित है, दरवाजे (पोल) का पुराना नाम हाथी पोल था। दरवाजे की शैली और निर्माण मुस्लिम कालीन है, मालवा सल्तनत के दौरान किले की बाहरी प्राचीर और दरवाजे का निर्माण किया गया था। इसका नाम खूनी दरवाजा पड़ने के पीछे दो भिन्न कहानियाँ प्रचलित है। पहली किवदंती बाबर के 1528 ईसवी में चँदेरी पर हमले से जुड़ा हुआ है। कहते है कि जब उसने चँदेरी के दुर्ग पर हमला किया तब चँदेरी मेदिनी राय खान्गर के अधिकार में था। बाबर ने दुर्ग पर घेराव ड़ाल दिया, और जब दुर्ग के रक्षकों को पराजय सामने दिखने लगी तो उन्होने एक-एक करके स्त्रियों एवं निवासियों को अपने हाथों से काट डाला, इस दौरान किले में इतना ज्यादा रक्तपात हुआ कि खून बहकर क़िले के मुख्य द्वार से बाहर आने लगा। इसी कारण क़िले के मुख्य द्वार को "खूनी दरवाजा" के नाम से जाना जाता है। 

 

एक और किवदंती जो इस दरवाजे के नामकरण से जुड़ी हुयी है, मालवा सुल्तान महमूद शाह I खिलजी ने 1438 ईसवी में एक लम्बे संघर्ष के पश्चात तुगलकों से चँदेरी के दुर्ग को जीत लिया, उसके पश्चात अगले 50 वर्षो तक यह दुर्ग मालवा सल्तनत के अंतर्गत रहा, इस दौरान चँदेरी के मुस्लिम सरदारों द्वारा, विरोधियों और अपराधियों को इसी दरवाजे के मुँडेर से नीचे फ़ेका जाता था तथा उनके क्षतविक्षत शव से सिर कलम करके दरवाजे के बुर्ज से लटका दिया जाता था, इसकी वजह से द्वार का नाम "खूनी दरवाजा" पड़ गया।

 

 खूनी दरवाजा, बहादुर शाह जफर मार्ग, दिल्ली

खूनी दरवाजा, दिल्ली में फिरोज़ शाह कोटला मैदान के ठीक सामने स्थित है। इसे लाल दरवाजे नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में इस दरवाजे से कई सारी खूनी घटनाए जुड़ी हुयी है। दरअसल मुग़लो के समय में यह दरवाजा अपराधियों और विद्रोहियों के नरमुंडो को प्रदर्शित करने के काम में लाया जाता था।

अकबर के मृत्यु के पश्चात जहाँगीर के मुग़ल राजगद्दी संभालने का विरोध अकबर के कुछ नवरत्नों ने किया था उसमे राजा मान सिंह, मिर्ज़ा अजीम खोका और अब्दुल रहीम खानेखाना इत्यादि थे। इसी के चलते जहाँगीर ने रहीम के दो पुत्रो के सिर कलम करके खूनी दरवाजे पर लटकाने का हुक्म दिया था।

1659 ईसवी में औरंगजेब ने अपने ही बड़े भाई दारा शिकोह की हत्या करवाने के बाद उसका क्षतविक्षत सिर इसी खूनी दरवाजे से प्रदर्शित करवाया था

22 सितंबर 1857 को दिल्ली के अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर के दो बेटों मिर्ज़ा मुग़ल, मिर्ज़ा खिज्र सुल्तान और पौत्र मिर्ज़ा अबु बख्त को ब्रिटिश अधिकारी मेजर विलियम होडसन ने गोली मरवा दी थी, इसके बाद दरवाजे के बुर्ज से इनके कटे सर प्रदर्शन के लिए लटकाए गए थे। बाद में इन्हे चाँदनी चौक स्थित पुलिस कोतवाली पर प्रदर्शित किया गया था।
 

 शाहगंज दरवाजा, बीदर


 शाहगंज दरवाजा, बहमनी सल्तनत के दौरान एक मुस्लिम संरचना है । नगर के बीचों बीच बने इस दरवाजे के बुर्ज को ज़रा ध्यान से देखिये, इसमे बने ये छोटे-छोटे छिद्र किस लिए है

 




 

 दिल्ली गेट, दरियागंज, दिल्ली

 इस दरवाजे का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने 1638 ईसवी में करवाया था, मुग़ल सुल्तान इस द्वार से जामा मस्जिद जाया करता था। 
 

1739 ईसवी में नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर, दरियागंज इस दरवाजे से हज़ारों दिल्लीवासियों के कटे सिर लटकाए थे।


दरवाजे के बुर्ज पर स्थित छोटे छोटे छिद्रों पर ध्यान दीजिये, इनका इस्तेमाल बारिश के पानी को निकालने या बंदूकों को चलाने के लिए नहीं होता था। इनका उपयोग नेजे लटकाने के लिए होता था।

 

 

मध्य एशिया की अन्य संभावित कुलाह मीनारे 

अभी तक के अध्ययन में तुर्की और अन्य मध्य एशियन स्टेप्पीज जतियों द्वारा सबसे ज्यादा नरमुंड मीनारों के उदाहरण हमारे समक्ष आये है, ऐसे में इन जतियों द्वारा अपने मूल प्रदेशो में बनवाई गयी मीनारों पर भी ध्यान देना आवश्यक है।

 बुर्ज-ए-कुलह फ़रंगी, शुश्तर, ईरान

यह मीनार या यो कहे की लाट ईरान के शुश्तर जिले में फारंगी नमक ऐतिहासिक स्थल पर मौजूद है, इस लाट की बनावट बड़ी अजीब है, जो यह दर्शाती है की नरमुंडों को टाँगने के अलावा यह शायद और किसी और काम के लिए प्रयोग में नहीं आती थी।

यहाँ के निवासियों को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। पुरत्ववेत्ताओ के अनुसार इसकी बनावट इस्लामिक काल से भी पहले की है, यह शायद सस्सानी शासकों के समय में बनवाई गयी होगी । लाट के ऊपरी भाग पर चारो और छिद्र है जिससे लकड़ी की खूंटी लगी होगी, और नरमुंड उसी से टाँगे जाते होंगे। इस लाट का नाम भी आश्चर्य जनक रूप से बुर्ज़-ए-कुलाह है, जिसका अर्थ ही नरमुंडों की मीनार होता है। इसके इतिहास के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है।

लाट में बने इन छिद्रों को ध्यान से देखिये, मेरे अनुमान से नरमुंडो को लटकाने में काम आते होंगे


 

 

 गजनी मीनार

अफ़ग़ानिस्तान के गजनी में स्थित ये जुड़वाँ मीनारे 12वी सदी में अफगान के तत्कालीन शासकों मसूद III और बहराम शाह द्वारा बनवाई गयी थी और महान गजनवी साम्राज्य के अंतिम निशानी में से एक है। अपने मूल रूप में ये मीनारे लगभग दोगुनी लंबी थी, लेकिन लंबे समयान्तराल में अब नीचे का हिस्सा ही बचा हुआ है। मीनारों की बनावट कुछ इस तरह से है कि इसमे जगह जगह छिद्र किए हुये है।

 

गजनी मीनार, समीप से

 

गजनी मीनारे अपने मूल रूप में 

 

 हेरात मीनार, हेरात, अफ़ग़ानिस्तान

 




 

 


 

 

जाम की मीनारत, गोर प्रदेश, अफ़ग़ानिस्तान


बाबरनामा में प्रदर्शित जाम की मीनार (1520 ईसवी)

 

 

 

 जरकुरगन की मीनारत, तरमेज़, उज्बेकिस्तान





 

 

कल्यान या कल्लाह मीनार, बुखारा, उज्बेकिस्तान



 

 कुल्तुग तिमुर मीनारत, कोन्ये उरगेंच, उत्तरी उज्बेकिस्तान



 

 


 

 खुसरोगर्द मिनारत, सब्जेवार, ईरान

खुसरोगर्द मिनारत, ईरान के सब्ज़ेवार शहर से 10 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है, पहले इस स्थान पर खुसरोगर्द नामक नगर होता था जो कि रेशम के मार्ग पर स्थित था। इस नगर को 1220 ईसवी में मंगोल सेना ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
इस मीनार का निर्माण 1112 ईसवी में सेल्जुक सुल्तान ताज-उद-दौला अबुल-कासिम इब्न सईद ने करवाया था। मीनार की ऊँचाई 30 मीटर (98 फीट) है, और उस समय यह ईरान की सबसे लंबी मीनार हुआ करती थी। मीनार को बनवाने का उद्देश्य रेशम के मार्ग पर चलते हुये कारवाँ को पथ प्रदर्शन करना था। इस मीनार से जुड़ा हुआ एक कारवाँ सराय भी था जो अब नष्ट हो चुका है।


ईरान की कुछ और मीनारे
 
बाग-ए-गौसखाने, इस्फ़हान, ईरान

 
 चेहेल दोख्तारन मीनारत, इस्फहान, ईरान 1112 ईसवी
 
 
 
गोलपाएगन मीनारेत, गोलपाएगन, ईरान, 1114 ईसवी
 

 

 

 अन्य संभावित मध्य युगीन नरमुंड मीनारे

 

एज़टेक - हुए ज़ोमपंटली (कपाल स्तम्भ), टेम्पलो मयोर, टेनोकिटीट्लान (मेक्सिको सिटी)

https://en.wikipedia.org/wiki/Tzompantli
ज़ोमपंटली कुछ इस प्रकार होती थी

अभी हाल ही में मेक्सिको सिटी के बीचों बीच स्थित टेम्पलो मयोर नामक एज़टेक पूजा स्थल पर खुदाई के दौरान कपालो का विशाल ढ़ेर मिला है, यह एज़टेक कोडेक्स में वर्णित ज़ोमपंटली मीनार (Hueye Tzompantli) है, पुरातत्ववेत्ताओ के अनुसार यह स्थान 6वी सदी से लेकर 12वी सदी के बीच का हो सकता है। यहाँ एज़टेक सूर्य देवता हुईत्जिलोपोक्ट्ली (Huitzilopochtli) का विशाल मंदिर था, एज़टेक लोग सूर्य देवता को नरबलि दिया करते थे। अधिकतर बलि युद्धबंदियों या आसपास के क़बीलो से पकड़े गए मनुष्यों की होती थी। नरबलि अमेरिका की लगभग हरैक सभ्यता का हिस्सा रही है और मंदिरों में मनुष्यों का वध करके कपाल की मीनारे बनाना मीसो-अमेरिकन की संस्कृतियों जैसे टोलमेक, माया और इंका में भी कई स्थानों पर देखा गया है।

 

http://www.the13thfloor.tv/2017/07/03/massive-tower-of-human-skulls-discovered-in-mexico-city/
ज़ोमपंटली का प्रस्तर निरूपण मेक्सिको सिटी के टेम्प्लो मयोर में कुछ इस प्रकार है, वर्षो तक विज्ञानी इसे केवल प्रतीकात्मक मानते रहे, लेकिन अब नए पुरातात्विक खोजो के बाद इसकी वास्तविकता में कोई संदेह नहीं रह गया है।

 टेम्प्लो मयोर के खोजी पुरातत्ववेत्ताओ के अनुसार एज़टेक लोग बलि देने के बाद नरमुंडो को लकड़ी से बनी एक मीनार में लगा देते थे तथा शेष धड़ भोजन या प्रसाद के रूप में खा लिया जाता था। 


इसके बारे में स्पेनी यात्री बर्नार्ड डियाज़ डी केस्टिलो कहते है कि,
"मुझे याद है कि वे एक प्लाजा में थे, जहां कुछ धार्मिक स्थल थे, और वहाँ इतनी मानव खोपड़ी थी कि गिना जा सकता था, वे किसी कार्यक्रम के अनुरूप व्यवस्थित लगे थे, मेरे विचार में 1 लाख से ज्यादा ही होंगे, मैं फिर से कहता हूँ, एक लाख से ज्यादा होंगे। चौराहे के अगले हिस्से में बिना चमड़ी मांस के हड्डियों की कई पंक्तियाँ थी, मृत लोगो की हड्डियां, जिन्हें गिना नहीं जा सकता था; और यहाँ कई नरमुंड लम्बे दंडों से दूसरे से सटे लटक रहे थे। तीन पुरोहित उन हड्डियों और खोपडियों को रख रहे थे, जो, जैसा कि हम समझते थे, उन हड्डियों के प्रभारी थे, जिन्हे हमने इस क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद और अधिक ध्यान से देखा, तस्कला समेत सभी गांवों में इसी तरह का माहौल था।

 

Aztec Priest removing heart of the man

 

 


 

 

कपालों के बीच क्षैतिज रूप से लकड़ी का पट्टा घुसाया जाता था, फिर इसी पट्टे से समानान्तर और भी कपालों को पिरोकर क्षैतिज पंक्ति बनाई जाती थी। इसके बाद लकड़ी के पट्टे को एक विशाल लकड़ी से बनी खुली अलमारी में प्रदर्शन हेतु रख दिया जाता था।

The Twelfth Book of the Florentine Codex  (wikipedia.org)
बंदी बनाए गए स्पेनियों और उनके घोड़ों के मुंडो को किसी फूलो की माला की तरह, लकड़ी के दंडों में पिरोकर लकड़ी की बनी खूंटीदार संरचना पर रखा गया है, इस सरंचना को ज़ोमपंटली कहा जाता था।



 बुर्ज अल-रूस या टूर डी क्रेन्स, जेरबा द्वीप, ट्यूनिशिया


16वी शताब्दी के दौरान इसाइयों और मुस्लिमों के बीच स्थल और समुद्र में कई युद्ध हुये जिनके कोई खास नतीजे नहीं निकले। विशेषकर समुद्र तट के किनारे बसे ईसाई देशो की हालत ज़्यादा खराब थी क्योंकि पूरे भूमध्यसागर पर आटोमन तुर्क और बर्बरो (ट्यूनिशिया और अल्जेरिया) की नौसेना का एकछत्र राज था और वे अक्सर ईसाई शहरो को निशाना बनाते रहते थे। एशिया से आने वाला सिल्क रूट व्यापार यूरोप में पूरी तरह से चौपट हो चुका था और केवल तुर्की की दया पर निर्भर था। इस दौरान स्पेनिश शासक फिलिप द्वितीय ने तुर्की एड्मिरल दर्गुत गाज़ी से ट्यूनिशिया का जेरबा द्वीप कब्जाने की सोची और हमला कर दिया परंतु द्वीप पर मौजूद तुर्की एड्मिरल दर्गुत गाज़ी ने स्पेनिओ को बहुत बुरी तरह से पराजित ही नहीं किया बल्कि अपने किले के सामने 10,000 स्पेनिओ के नरमुंडों एवं हड्डियों से एक मीनार को खड़ा किया जो काफी लंबे समय तक अपने स्थान पर बनी रही। 
 

 

 

इस कपाल मीनार को 1848 ईसवी में ट्यूनीस के बे(ब्रिटिश गवर्नर) द्वारा नष्ट कर दिया गया, और कपालो एवं अन्य कंकालों को समीप के ईसाई कब्रिस्तान में दफनाया गया था। इसके बाद इस स्थान पर शहीदो की याद में एक ओबिलिस्क का निर्माण किया गया जो आज भी यहाँ मौजूद है
 

 

 


केले कुलेशी या केले कुला, निस शहर, सर्बिया

सर्बियन नरमुंडो की मीनार, सर्बियाई केली टॉवर (निस, सर्बिया) सर्बियाई क्रांतिकारियों की खोपड़ी से बना है

(सर्बियाई: -еле-кула, सर्बियाई उच्चारण: टेल के कुलाह [t̩el ke kula]) एक मीनार है जिसे निस शहर के पास 19वीं शताब्दी के सर्बियाई विद्रोहियों के शवो से कटे हुए 952 नरमुंडों से बनाया गया था मीनार को ओटोमन साम्राज्य छोड़ने की माँग करने वाले सभी सर्बों को सबक सिखाने के उद्देश्य से बनाया गया था। तुर्को से आज़ादी के बाद इस मीनार को एक स्मारक में बदल दिया गया और एक गिरजाघर की दीवारों से ढ़क दिया गया है। आज यह स्वतंत्र आन्दोलन की महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है।

31 मई, 1809 को, सर्ब विद्रोहियों को 1804 ईसवी में विद्रोह के बाद नि के कुछ किलोमीटर उत्तर में चीगर पहाड़ी पर हुई लड़ाई में तुर्क सेना के खिलाफ सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा, चेगर की लड़ाई में, लगभग तीन हजार सर्बियाई योद्धाओं ने डेढ़ महीने तक अपने से बहुत ताक़तवर ओटोमन सेना का डटकर सामना किया। हालांकि, डेढ़ महीने के प्रतिरोध के बाद, ओटोमन सैनिकों ने सर्बो की अग्रणी खाइयों को पार करना शुरू कर दिया, अत: यह स्पष्ट हो गया कि सर्बियन युद्ध हार जायेंगे। इस स्थिति पर, सर्बियाई कमांडर स्टीवन सिंदजेलिक अपने सैनिकों के एक समूह के साथ वहाँ ओटोमन सैनिकों को मारने के लिए आत्मघाती कदम उठाता है और स्वयं के साथ शस्त्रागार उड़ा देता है और इस तरह बाक़ी लोगो को भागने का समय मिल जाता है।

इस युद्ध के पश्चात, तुर्क सेना के कमांडर हुर्शीद पाशा , तुर्की संस्कृति के अनुसार, मृत सर्बों के सिर एकत्र करने का आदेश देता है कुल 952 सिर एकत्रित किए जाते है। इन नरमुंडों को काट कर साफ करके, भूस भरा जाता है और इस्तांबुल में ओटोमन सुल्तान महमूद II को भेजा जाता है। तथा शेष खोपड़ी के साथ एक चोकोर स्तम्भ बनाया जाता है। जिसके चार तरफ कपालों की 14 पंक्तियों बनी होती है। तीन मीटर ऊंची इस मीनार के निर्माण का उद्देश्य स्वतंत्रत के लिए संघर्ष कर रहे सर्बों में दहशत फैलाना था

 

सर्बियन क्रांतिकारियों के नरमुंडो से बनी इस मीनार का सर्बिया वासियों के लिए विशेष महत्व है।

 

 


 

 तुर्की सैनिकों के नरमुंडो से बनी मीनार

1826 ईसवी में ओटोमन सेनापति मुस्तफा बे और ग्रीक विद्रोही जिओर्जियस कराइस्काकिस के नेतृत्व में तुर्की और ग्रीक सेना के बीच मध्य ग्रीस में स्थित अरकोवा नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में तुर्को की करारी शिकस्त हुयी, 2000 में 1700 तुर्क सैनिक मारे गए और केवल 300 बच कर भाग सके। जीत दर्ज करने के पश्चात ग्रीक सेनापति जिओर्जियस ने तुर्की प्रथा की तरह 300 तुर्की सैनिकों के नरमुंड से मीनार का निर्माण करवाया, इस तरह उसने उसी वर्ष अप्रैल में हुयी पराजय का बदला ले लिया। इस मीनार के ऊपर पत्थर से एक अभिलेख भी लगाया गया जिस पर ग्रीक भाषा में लिखवाया गया "बर्बरों पर ग्रीक फतह का विजय स्तम्भ"। तुर्की सेनापति मुस्तफ़ा बे और केहाया के नरमुंडो को मीनार के दोनों तरफ लटकाया गया।



ईसवी 1578 में, कार्स के नजदीक सिलदिर (cildir) के युद्ध में, तुर्की वज़ीर लाला मुस्तफा पाशा ने ईरानी सफाविद सेना की पराजय के बाद ईरानी सैनिकों के नरमुंडों से दो मीनारों का निर्माण करवाया था।

 

 

ईसवी 1795 में, तबिलिसी के निकट कृतसनीसी के युद्ध में, ईरानी शासक आगा मोहम्मद खान ने जार्जिया को हराने के पश्चात जार्जियाई सैनिकों के नरमुंडों से मीनार का निर्माण करवाया था।



नरमुंडों की मीनार अफ़ग़ानिस्तान (अमीर अब्दुर रहमान)

आमिर अब्दुर रहमान (1880-1901 ईसवी) ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने शासन के दौरान, काफी निर्दयता और बर्बरता दिखाई। उसने कई युद्धों में पराजित अफगानियों के नरमुंडों से मीनारों का निर्माण करवाया था लेकिन अपनी आत्मकथा में  ऐसी केवल एक मीनार बनवाना ही स्वीकार किया है ।
पुस्तक ताज उल तारीख़ के पृष्ठ सं॰ 39 में, कातघन के युद्ध के बारे में वह कहता है
"शत्रुओं के द्वारा मेरे करीब 3,000 लोगों को मार दिया गया, मैंने युद्ध में मारे गए दुश्मन सैनिकों के सिर से मीनारों को बनवाने का हुक्म दिया जिससे बाक़ी बचे शत्रु भाभीत हो जाये।"
1888-1893 ईसवी के बीच अब्दुर्रहमान ने हजारो की संख्या में हज़ारा लोगों की हत्याए कारवाई, उनकी स्त्रियों एवं बच्चों को गुलाम बनाकर बेचा और पुरुषों के सिर कलम कर कुलाह मीनारे बनवाई


कोरुना टोर दे हरक्युलस, कोरुना, गलिसिया, स्पेन

हरकुलस की मीनार के नाम से प्रख्यात इस प्रकाशस्तम्भ का निर्माण रोमनों ने पहली सदी के दौरान करवाया था। ऐसा विश्वास है की इस स्थान पर पहले भी एक फोनीशियन स्तम्भ रहा होगा, क्योंकि देखने में इसका संरचना किसी फोनीशियन स्थापत्य की तरह लगती है। रोमनों ने इसका निर्माण उत्तर की तरफ से होने वाले केल्टिक हमलो के मद्देनजर करवाया था। इस प्रकाश स्तम्भ के समीप एक रोमन कॉलोनी भी थी, जो की बाद में उत्तर से होने वाले वाइकिंग हमलों में पूरी तरह से नष्ट हो गयी।

 

 

सन्त पीटर का कैथेड्रहल, एक्सटर, ब्रिटेन

सन्त पीटर, ईसा मसीह के 12 शिष्यों में से एक थे, इनकी हत्या रोमन सीज़र नीरो के आदेश पर 64 ईसवी में कर दी गयी थी। हत्या करने से पहले इन्हे भी ईसा मसीह की तरह सूली पर चढाया गया था।

 

 

सन्त वलेन्टाईन : रोम के शासक क्लौडियस द्वितीय (तीसरी शताब्दी) द्वारा सन्त वलेंटाईन को सजायाफ्ता ईसाई क़ैदियो की मदद करने और ईसाइयो की चोरी छिपे विवाह करवाने के आरोप में 14 फरवरी के दिन सिर कलम करके हत्या करवा दी गयी थी। कैथोलिक चर्च इस दिन को सन्त वलेंटाईन की पुण्य तिथि के तौर पर मनाता है।
  

 



 

किडवेली दुर्ग, किडवेली, वेल्श , ब्रिटेन

यह महल किसी तरह गृह युद्ध में शामिल होने से बच गया, इसलिए यह अच्छी तरह से संरक्षित है। रानी ग्वेलियन, राजा ग्रूफ़िड की पत्नी थी और जब वह नॉर्मन्स के साथ समझौता करने के लिए राज्य से बाहर गया था, तो नोरमनो ने धोखे से किले पर हमला कर दिया, रानी ग्वेलियन ने नॉर्मन्स आक्रमण से महल की रक्षा के लिए एक सेना तैयार की, लेकिन यह प्रयास विफल रहा और रानी को घने जंगलों में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा, जहाँ उसने अपने चार बेटों की परवरिश भी कीलेकिन उसका नॉर्मन्स से कोई मुकाबला नहीं था, उसे 1136 ईसवी में पकड़ लिया गया और देशद्रोह के आरोप में उसकी हत्या कर दी गई तब वह सिर्फ 36 साल की थी, उसका सिर कलम करके खोपड़ी को किले के बुर्ज से टाँग दिया गया। 


वह किसी भी युद्ध में वेल्श सेना का नेतृत्व करने वाली पहली और आखिरी महिला थी। उसके मरने के बाद सदियों तक वेल्श के योद्धा जब भी युद्ध करते थे तो 'रिवेंज फॉर ग्वेलियन' चिल्लाते थे। यह कहा जाता है कि रानी की मृत्यु व्यर्थ नहीं गई। ग्वेलीयन की मृत्यु ने वेल्स जनता को एक भयंकर विद्रोह के लिए प्रेरित किया जिसकी वजह से नॉर्मन्स को वेस्ट वेल्स से छोडकर जाना पड़ा।

 

 

कैथेड्रेल डी ओट्रान्टो [ओट्रान्टो का केथेड्रहल (Otranto - Cattedrale di Otranto)]


ओट्रान्टो एक प्राचीन ग्रीक नगर है। एड्रियाटिक सागर के पूर्वी तट का निकटतम बंदरगाह होने के कारण, रोमन काल में इसका महत्व काफी ज्यादा था। रोमन साम्राज्य के अंत के बाद, यह बायजान्टिन सम्राटों के हाथों में आ गया, सन 1068 ईसवी में इस बन्दरगाह पर रॉबर्ट गुइकार्ड के नेतृत्व में नॉर्मन सैनिकों ने कब्जा कर लिया। नॉर्मनों ने शहर की सुरक्षा के लिए मजबूत दीवारों का निर्माण करवाया और 1088 ईसवी में कैथेड्रल का निर्माण किया। जब सम्राट फ्रेडरिक बारबरोसा के पुत्र हेनरी VI ने 1186 ईसवी में सिसिली के कॉनस्टेन्जी से शादी की तो ओट्रान्टो बन्दरगाह होहेनस्टौफेन के कब्ज़े में आ या और अंत में नेपल्स के राजा फर्डिनेंड प्रथम के अधिकार में आ गया। 1480 और 1481 के बीच यहां "औटोमन तुर्कों का आक्रमण" हुआ। तुर्क साम्राज्य के सैनिकों ने इस बन्दरगाह पर जबर्दस्त आक्रमण किया और शहर और उसके गढ़ की घेराबंदी कर ली। गाथाओं के अनुसार, शहर पर कब्जा करने के बाद 800 से अधिक निवासियों के सिर कलम कर केथेड्रल पर प्रदर्शित किए गए थेउन "ओट्रेन्टो के शहीदो" की याद में आज भी इटली में शोक मनाया जाता है, उनके कपाल ओट्रान्टो गिरजाघर में प्रदर्शित किए जाते है। इस घटना के एक वर्ष पश्चात ओटोमन सेना को ईसाई देशों और पोप की सेनाओं के हस्तक्षेप के बाद शहर से भगा दिया गया

ओट्रान्टो का यह केथेड्रल 25 मीटर चौड़ा 54 मीटर लंबा है और 42 अखंड ग्रेनाइट और संगमरमर के स्तंभों पर बनाया गया है। इस केथेड्रल में अभिभूत कर देने वाले मोसाइक डिज़ाइन बने हुये है। ये 1163 और 1165 ईसवी के बीच पेंटालिओन नामक एक ईसाई सन्त और उनकी कार्यशाला द्वारा बनाये ये थे। मोज़ेक कुल 1596 वर्ग मीटर तक फैला हुआ है और यहाँ लगभग 1 करोड़ टेसर का उपयोग किया गया था। जानकारों के अनुसार, इन मोजेक पर 700 अलग-अलग "कहानियाँ" प्रदर्शित है। जर्मन इतिहासकार कार्ल अर्नोल्ड विल्मसेन ने मोज़ेक के बारे में इतालवी में "लेनिगमा डी ओट्रान्टो" नामक सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित की है।

 

सन्त कैथेरीन चर्च - सोमरसेट – ड्रेटन, इंग्लैंड

वर्तमान इमारत 14वी सदी की बनी हुयी है हालाँकि इसमे समय पर बदलाव और मरम्मत होते रहे है। यह गिरिजाघर सन्त कैथरीन को समर्पित है, जिसे दर्शनशास्त्रियों और प्रचारकों का संरक्षक कहा जाता है, इस महिला सन्त को एक बड़े पहिये से बाँध कर भयंकर यातनाए दी गयी थी, उनकी खाल को उतार दिया गया और फिर सिर कलम कर दिया था। इसलिए चर्च में उनके प्रतीक के रूप में उसी पहिये को रखा गया है, यहाँ होने वाली वार्षिक आतिशबाज़ी को भी "कैथरीन के पहिया" के नाम से जाना जाता है।

 


लंदन टावर, लंदन, ब्रिटेन

वेल्स के अंतिम राजकुमार को 11 दिसंबर, 1282 को, बुईल्थ वेल्स (Builth Wells) के आसपास के क्षेत्र [सिल्मेरी (Cilmeri) या शायद एबेदेर (Aberedw)] में मार दिया गया था। उसका सिर उसके दुश्मनों द्वारा काट दिया गया और यह कहा जाता है कि यह रुद्दन में इंग्लैंड के राजा एडवर्ड प्रथम के पास भेजा गया था। एंग्लिसी (Anglesey) में अंग्रेजी सेनाओं को दिखाए जाने के बाद, नरमुंड को लंदन ले जाया गया जहां उसे एक साँग पर मुकुट के साथ प्रदर्शित किया गया ताकि उसका मजाक उड़ाया जा सके। फिर इसे भाले पर टॉवर ऑफ लंदन ले जाया गया और एक द्वार के ऊपर लटका दिया गया, जहां यह कई वर्षों तक रहा।

 

 

लंदन ब्रिज, लन्दन, इंग्लैंड

लंदन ब्रिज, पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। आज यह जितना प्रख्यात है बीते काल में यह उतना ही कुख्यात भी रहा है। इस पुल पर इंग्लैंड के अनगिनत शत्रुओं के नरमुंड टाँगे गए है। ऐसे ही एक महान व्यक्ति स्कॉटिश क्रान्तिकारी विलियम वालेस का 23 अगस्त 1305 को सिर कलम करके, एक लंबे भाले की सहायता से लंदन के ब्रिज पर टांग दिया गया जहां यह लंबे समय तक बना रहा।
 
 

 

 

सन्दर्भ (Reference) :

1. The British Museum, London, Britain (https://www.britishmuseum.org/)

2. Musee do Louvre, Paris, France (https://www.louvre.fr/en/)

3. The Ancient Oriental Museum, Istanbul, Turkey (https://istanbul.ktb.gov.tr/TR-165608/eski-sark-eserleri-muzesi.html)

4. National Museum of Iraq, Beghdad, Iraq (https://www.theiraqmuseum.com/)

5. Metropolitan Museum of Art, New York (http://www.metmuseum.org/)

6. The Walters Art Museum (https://thewalters.org/)

7. https://www.wikipedia.org/ , https://www.wikimedia.org/

8. https://ibloga.blogspot.com/2009/02/five-pillars-of-islam.html

9.  https://delhimagic.blogspot.com/2008/08/of-towers-and-skulls.html

10. https://en.wikipedia.org/wiki/Battle_of_Arachova


 

 

 

 

लेखक की तरफ से:

इस ब्लॉग में प्रयुक्त किए गये कुछ चित्र विभिन्न वेबसाइटो और पुस्तको से लिए गए है। जिनमे से काफी क्रिएटिव कॉमन्स के लाइसेन्स के तहत सार्वजनिक डोमैन पर मुक्त उपलब्ध है। फिर भी हमने अपनी तरफ से इन चित्रो के स्त्रोत, मालिक और अधिकार का विवरण देने का पूरा प्रयास किया है।

इसके बावजूद भी यदि किसी को ऐसा लगता है कि उसके सर्वाधिकार लाइसेन्स की अवहेलना हो रही है, तो अनुरोध है की कृपया हमे इसकी जानकारी दे। हम तुरंत उचित कार्यवाही करेंगे।

 

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